Wednesday 15 April 2015

बैसाखी पर्व : किसान की खुशहाली का प्रतीक तथा ऐतिहासिक घटना दिवस




बैसाखी का पर्व हिन्दू नववर्ष का दूसरा महीना बैशाख के पहले दिन बैसाखी का पर्व भारत भर में सभी जगह मनाया जाता है। इसे दूसरे नाम से खेती का पर्व भी कहा जाता है। कृषक इसे बड़े आनंद और उत्साह के साथ मनाते हुए खुशियों का इजहार करते हैं। बैसाखी मुख्यतः कृषि पर्व है। जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है तब यह पर्व मनाया जाता है। जिसमें फसल पकने के बाद उसके कटने की तैयारी का उल्लास साफ तौर पर दिखाई देता है। लोकजीवन में बैसाखी फसल पकने का त्योहार है। फसल पकने को ग्रामीण जीवन की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। 
बैसाखी एक लोक त्योहार है। यह पर्व पूरी दुनिया को भारत के करीब लाता है। बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार है। जिसे देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले सभी धर्मपंथ के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। सूर्य मेष राशि में प्राय: (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) १३ या १४  अप्रैल को प्रवेश करता है, इसीलिए बैसाखी भी इसी दिन मनाई जाती है। वैसे बैसाखी पर्व हर साल १४ अप्रैल को मनाया जाता है, परन्तु कभी-कभी १२ - १३ वर्ष में यह त्योहार १४ तारीख को भी आ जाता है। इस वर्ष सन २०१५  में १४ अप्रैल को यह पर्व मनाया जा रहा है। 
भारत में महीनों के नाम नक्षत्रों पर रखे गए हैं।इस समय उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में दिन भर फसल की कटाई की थकान मिटाने और मनोरंजन के लिए ''चैता गीत'' खूब गाया जाता है 

 देखिये इस लिंक में चैता गीत -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/hA0FDKk9sEw/Gori%2BGori%2BToree%2BBahiyaa-%2BChaita%2B%255BFull%2BSong%255D%2BDamad%2BJi

बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा युवा पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं। इसलिए वैशाख मास के प्रथम दिन को बैसाखी कहा गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया। बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है अतः इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना, महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का शुभारंभ, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, नवरात्रों का आरंभ, सिंध प्रांत के समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल का जन्म दिवस, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक, महावीर जयंती आदि अनेक गौरवपूर्ण इतिहास वैशाख माह से जुड़ा है।

स कृषि पर्व की आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी काफी मान्यता है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक - युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। 
बैसाखी आकर पंजाब के युवा वर्ग को याद दिलाती है। साथ ही वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहां माता अपने दस
गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी।

गुरु साहेब भजन देखिये इस लिंक में


केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के अन्य प्रांतों में भी बैसाखी पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन मेले लगते हैं। लोग श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं तथा उत्तर-पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी इस दिन बिहू का पर्व मनाया जाता है। 

बैसाखी का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी विशिष्ट स्थान है। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के समीप १३ अप्रैल १९१९ में हजारों लोग जलियाँवाला बाग में एकत्र हुए थे। लोगों की भीड़ अंग्रेजी शासन के रालेट एक्ट के विरोध में एकत्र हुई थी। जलियाँवाला बाग में जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियाँ बरसाईं जिसमें करीब १०००  लोग मारे गए और २००० से अधिक घायल हुए। अंग्रेजी सरकार के इस नृशंस कृत्य की पूरे देश में कड़ी निंदा की गई और इसने देश के स्वाधीनता आंदोलन को एक नई गति प्रदान कर दी।

जलियाँवाला बाग़ कांड की एक झलक देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/l1Ge5RgkSO8/Jallianwala%2BBagh%2Bmassacre

जलियाँवाला बाग की घटना ने बैसाखी पर्व को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया। आज भी लोग जहाँ इस पर्व को पारंपरिक श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं वहीं वे जलियाँवाला बाग कांड में शहीद हुए लोगों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। 




चैता गीत देखने के लिए लॉगिन करें -
www.bhojpurinama.com


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