Wednesday 29 July 2015

भारत रत्‍न एपीजे अब्दुल कलाम का निधन : देश ने एक प्रख्यात वैज्ञानिक, कुशल शिक्षक व कवि खो दिया


भारत रत्न  पूर्व राष्‍ट्रपति और अब्‍दुल कलाम आजाद का हमारे बीच से हमेशा के लिए विदा होना देश के लिए बहुत बड़ी अपूरणीय क्षति है, जिसे कभी भी नहीं पूर्ण किया जा सकता है। कुछ लोग दुनियाँ से जाते समय सिर्फ भाव छोड़ जाते हैं, कुछ लोग सिर्फ शब्द छोड़कर जाते हैं और कुछ लोग सिर्फ कर्म छोड़कर जाते हैं। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जिनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम भाव, शब्द और कर्म तीनों ही छोड़कर गए हैं।  83 साल के कलाम की शिलांग में आईआईएम में लेक्‍चर देने गए थे लेकिन वहीं पर भाषण देने के दौरान वह बेहोश होकर गिर पड़े। जानकारी के अनुसार उन्‍हें वहां के ही एक अस्‍पताल में 7 बजे भर्ती कराया गया था। सूत्रों ने बताया कि उनकी ब्‍लड प्रेशर और दिल की धड़कन एकदम से कम हो गई थी जिसके बाद उन्‍हें आईसीयू में भर्ती कराया गया। 
जीवन परिचय : भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात अब्दुल कलाम का जन्म 5 अक्टूबर 1931 को हुआ था तथा मृत्यु  27 जुलाई 2015  को हुई। भारत के अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय व चहेते राष्ट्रपतियों में से एक डॉ. अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम ने तमिलनाडु के एक छोटे से तटीय शहर रामेश्वरम में अखबार बेचने से लेकर भारत के राष्ट्रपति पद तक का लंबा सफर तय किया है। पूर्व राष्ट्रपति अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम को पूरा देश एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से जानता है। वैज्ञानिक और इंजीनियर कलाम ने 2002 से 2007 तक 11वें राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा की। मिसाइल मैन के रूप में प्रसिद्ध कलाम देश की प्रगति और विकास से जुड़े विचारों से भरे व्यक्ति थे।
एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ। पेशे से नाविक कलाम के पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। ये मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। पांच भाई और पांच बहनों वाले परिवार को चलाने के लिए पिता के पैसे कम पड़ जाते थे इसलिए शुरुआती शिक्षा जारी रखने के लिए कलाम को अखबार बेचने का काम भी करना पड़ा। आठ साल की उम्र से ही कलाम सुबह 4 बजे उठते थे और नहाकर गणित की पढ़ाई करने चले जाते थे। सुबह नहाकर जाने के पीछे कारण यह था कि प्रत्येक साल पांच बच्चों को मुफ्त में गणित पढ़ाने वाले उनके टीचर बिना नहाए आए बच्चों को नहीं पढ़ाते थे। ट्यूशन से आने के बाद वो नमाज पढ़ते और इसके बाद वो सुबह आठ बजे तक रामेश्वरम रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर न्यूज पेपर बांटते थे।
कलाम ‘एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी’ में आने के पीछे अपनी पांचवी क्लास के टीचर सुब्रह्मण्यम अय्यर को बताते थे। वो कहते थे कि ‘वो हमारे अच्छे टीचर्स में से थे। एक बार उन्होंने क्लास में पूछा कि चिड़िया कैसे उड़ती है? क्लास के किसी छात्र ने इसका उत्तर नहीं दिया तो अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए, वहां कई पक्षी उड़ रहे थे। कुछ समुद्र किनारे उतर रहे थे तो कुछ बैठे थे, वहां उन्होंने हमें पक्षी के उड़ने के पीछे के कारण को समझाया, साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी विस्तार पूर्वक बताया जो उड़ने में सहायक होता है। उनके द्वारा समझाई गई ये बातें मेरे अंदर इस कदर समा गई कि मुझे हमेशा महसूस होने लगा कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूं और उस दिन की घटना ने मुझे जिंदगी का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा दी। बाद में मैंने तय किया कि उड़ान की दिशा में ही अपना करियर बनाऊं। मैंने बाद में फिजिक्स की पढ़ाई की और मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई की।
1962 में कलाम इसरो में पहुंचे। इन्हीं के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बनाया। 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित किया गया और भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। कलाम ने इसके बाद स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भारतीय तकनीक से बनाईं। 1992 से 1999 तक कलाम रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे। इस दौरान वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट भी किए और भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया। कलाम ने विजन 2020 दिया। इसके तहत कलाम ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की के जरिए 2020 तक अत्याधुनिक करने की खास सोच दी गई। कलाम भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे।
1982 में कलाम को डीआरडीएल (डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री) का डायरेक्टर बनाया गया। उसी दौरान अन्ना यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। कलाम ने तब रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के साथ इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) का प्रस्ताव तैयार किया। स्वदेशी मिसाइलों के विकास के लिए कलाम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई।
इसके पहले चरण में जमीन से जमीन पर मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बनाने पर जोर था। दूसरे चरण में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल, टैंकभेदी मिसाइल और रिएंट्री एक्सपेरिमेंट लॉन्च वेहिकल (रेक्स) बनाने का प्रस्ताव था। पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग नाम के मिसाइल बनाए गए। कलाम ने अपने सपने रेक्स को अग्नि नाम दिया। सबसे पहले सितंबर 1985 में त्रिशूल फिर फरवरी 1988 में पृथ्वी और मई 1989 में अग्नि का परीक्षण किया गया। इसके बाद 1998 में रूस के साथ मिलकर भारत ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया और ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। ब्रह्मोस को धरती, आसमान और समुद्र कहीं भी दागी जा सकती है। इस सफलता के साथ ही कलाम को मिसाइल मैन के रूप में प्रसिद्धि मिली और उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
अब्दुल कलाम को 1981 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण और फिर 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न प्रदान किया। भारत के सर्वोच्च पर पर नियुक्ति से पहले भारत रत्न पाने वाले कलाम देश के केवल तीसरे राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले यह मुकाम सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुसैन ने हासिल किया।
भारत  अनाथ हो गया। न कोई ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब जैसा था न हो सकता है। भारत के इस लाडले सपूत को भावभीनी श्रद्धांजलि । आपकी खाली जगह पूरे संसार में कोई नहीं भर सकता है।

कलाम साहब आपको को शत शत नमन !!

Monday 27 July 2015

तिथी विशेष : अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद जयंती

पण्डित चन्द्रशेखर तिवारी 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाभरा गाँव (अब चन्द्र्शेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था । उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया।
चन्द्रशेखर आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्‍वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों बाद १५ अगस्त सन् १९४७ को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ किन्तु वे उसे जीते जी देख न सके। सभी उन्हें पण्डितजी ही कहकर सम्बोधित किया करते थे।
साण्डर्स-वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा पाये तीन अभियुक्तों- भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से सिर्फ ३ ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। ११ फ़रवरी १९३१ को लन्दन की प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू जी ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे अपने तकियाकलाम 'स्साला' के साथ भुनभुनाते हुए ड्राइँग रूम से बाहर आये और अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गये। अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी हुई आजाद ने आज़ादी की अपनी परिभाषा गढ़ी थी अतः जब आजाद की पिस्टल के केवल 1 गोली शेष रही आजाद ने स्वयं को मा भारती के लिए न्यौछावर करते हुए जीवन पर्यंत आजाद रहने के अपने संकल्प की पूर्णाहुति की । यह दुखद घटना २७ फ़रवरी १९३१ के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।
पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। मां भारती के इस सच्चे सपूत के श्रीचरणों में कोटि कोटि वंदन !!

Tuesday 21 July 2015

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के ‪अग्रदूत‬ बाग़ी‬ ‪बलिया‬ शहीद मंगल पाण्डेय जी की ‪जयन्ती‬ विशेष

माँ भारती के अमर सपूत प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत‬  बाग़ी‬ बलिया‬ शहीद मंगल पाण्डेय जी का जन्म १९ जुलाई १८२७ ई. को ग्राम नागवा, जिला बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की ३४वी रेजीमेण्ट में सिपाही के रूप कार्यरत थे। ८ अप्रैल १८५७ को बैरकपुर में अंग्रेजों द्वारा फाँसी की सजा से शहीद हो गये। 
जीवन परिचय : बाग़ी‬ बलिया‬ अमर शहीद मंगल पांडे हरजोत कोली कलोली के  पक्का दोस्त थे।  उत्तर प्रदेश को अंग्रेजी हुकूमत के समय में संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में जिला बलिया के  नागवा गाँव में उनका हुआ था। 
विद्रोह की शुरुआत : भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात् १८५७ के विद्रोह की शुरुआत मंगल पाण्डेय से हुई।  जब गाय व सुअर की  चर्बी लगे कारतूस लेने से मना करने पर उन्होंने विरोध जताया, जिसके  परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का फौजी हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और २९ मार्च सन् १८५७ ई. को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढ़े  अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण करने से पूर्व उन्होंने अपने अन्य साथियों से उनका साथ देने का आह्वान भी किया था किन्तु कोर्ट मार्शल के डर से जब किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपनी ही रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था। इसके बाद विद्रोही मंगल पाण्डेय को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड लिया। उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर ६ अप्रैल १८५७ को मौत की सजा सुना दी गयी। 
शहीद दिवस : कोर्ट मार्शल के अनुसार उन्हें १८ अप्रैल १८५७ को फाँसी दी जानी थी, परन्तु इस निर्णय की प्रतिक्रिया कहीं विकराल रूप न ले ले। इसी कूट रणनीति के तहत क्रूर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही ८ अप्रैल सन् १८५७ को फाँसी के फन्दे पर लटका कर शहीद कर दिया।

Tuesday 14 July 2015

भोजपुरी फिल्म ‘‘निरहुआ रिक्शावाला -2’’ ने पूरे किये 50 दिन

भोजपुरी सिने जगत का तीसरा दौर इतिहास का अलग ही पन्ना लिख रहा है। पिछले कई सालों से हर वर्ष लगभग ८० से ९० फिल्मों का सफल प्रदर्शन किया जाता है। जबकि निर्माण की बात की जाय तो लगभग सौ का अकड़ा पार हो जाता है। विगत कुछ वर्षों में प्रदर्शित की गई भोजपुरी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल तो हुई परन्तु बड़े पैमाने पर सुपर हिट का परचम न लहरा सकी। पिछले साल की सुपर डुपर हिट सिल्वर जुबली मना चुकी  दिनेश लाल यादव ‘‘निरहुआ’’ की भोजपुरी फिल्म निरहुआ हिन्दुस्तानी ने नया इतिहास रचते हुए बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त मुनाफा कमाया।
इस फिल्म की कामयाबी ने दिनेश लाल यादव ‘‘निरहुआ’’ को सुपर स्टार से जुबली स्टार बना दिया। इस फिल्म के जरिये भोजपुरी सिनेमा में बतौर नायिका आम्रपाली दूबे ने पदार्पण किया और पहली फिल्म से ही सिनेप्रेमियों को अपना दीवाना बना ली हैं। दिनेश लाल यादव ‘‘निरहुआ’’और आम्रपाली की जोड़ी दर्शकों को इतना पसंद आई कि बार - बार इस जोड़ी को सिनेमा के रुपहले परदे पर देखना चाहते हैं।

सुपर डुपर हिट फिल्म निरहुआ हिन्दुस्तानी के बाद पटना से पाकिस्तान फिल्म की अपार सफलता के साथ-साथ  इस फिल्म में भी यह रोमांटिक जोड़ी खूब पसंद की गई। इसी कड़ी में अब निरहुआ इंटरटेनमेंट प्रा०लि० व राहुल खान प्रोडक्शनस् के बैनर तले बनी ‘‘निरहुआ रिक्शावाला-2’’ उत्तर प्रदेश और बिहार के कई सिनेमाघरों में शानदार सफलता के साथ ५० दिन पूरे करके  १०० दिन की ओर अग्रसर है। यह फिल्म  भोजपुरी जगत की सर्वाधिक सफल फिल्म ‘‘निरहुआ रिक्शावाला’’ की सीक्वल है।जिसमें दिनेशलाल यादव ‘‘निरहुआ’’ और पाखी हेगडे़ की जोड़ी ने दर्शकों का खूब प्यार बटोरा था। 
निर्माता प्रवेशलाल यादव व राहुल खान के इस फिल्म के निर्देशन की कमान संभाली है सतीश जैन ने। फिल्म में जुबली स्टार दिनेशलाल यादव ‘‘निरहुआ’’और  आम्रपाली को रोमांटिक जोड़ी के साथ मनोज टाईगर, सुशील सिंह,  किरण यादव, सत्यप्रकाश, राहुल खान  विजयलाल यादव, प्रकाश जैस व अक्षरा सिंह  विशेष भूमिकाओं में हैं। फिल्म के प्यारे लाल यादव के लिखे गीतों को  मधुर संगीत से सजाया है राजेश – रजनीश ने। फिल्म के संवाद संतोष मिश्रा,  कथा-पथकथा सतीश जैन ने लिखा है। छायांकन  प्रकाश-तपन,  नृत्य निर्देशन कानू मुखर्जी, पप्पु खन्ना व निशांत,  एक्शन यशबाबू व संपादन संतोष हरावड़े का है।

भोजपुरी जुबली स्टार दिनेशलाल यादव ‘‘निरहुआ’’और  आम्रपाली को रोमांटिक जोड़ी वाली यह फिल्म ईद के पावन त्यौहार पर मुम्बई के सिनेमाघरों में जोर शोर रिलीज़ की जाने वाली है। 

Friday 10 July 2015

१० जुलाई : "भिखारी ठाकुर" की पुण्य तिथि विशेष

भिखारी ठाकुर की पुण्य तिथि  विशेष : भोजपुरी के पितामह भिखारी ठाकुर  जिन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है। उन्होंने भोजपुरी समाज को गीत संगीत के जरिये नया आयाम दिया। महान कवि, लोक गायक व अभिनेता भिखारी ठाकुर का  १० जुलाई २०१५ को ४४वाँ पुण्य तिथि मनाई जा रही है। उनका जन्म १८ दिसम्बर  सन १८८७ ई. को हुआ था तथा मृत्यु १० जुलाई सन १९७१ ई. को हुई थी। वे भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, नारी विमर्श एवं दलित विमर्श के उद्घोषक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपनेकाव्य और नाटक की भाषा बनाया। आज विश्व के कई देशों  में उनका नाम ससम्मान आदर के साथ लिया जाता है। 
जीवन परिचय : भिखारी ठाकुर का जन्म १८ दिसम्बर १८८७ को बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर व माताजी का नाम शिवकली देवी था। वे जीविकोपार्जन के लिये गाँव छोड़कर खड़गपुर चले गये। वहाँ उन्होने काफी पैसा कमाया किन्तु वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। रामलीला में उनका मन बस गया था। इसके बाद वे जगन्नाथ पुरी चले गये। अपने गाँव आकर उन्होने एक नृत्य मण्डली बनायी और रामलीला खेलने लगे। इसके साथ ही वे गाना गाते एवं सामाजिक कार्यों से भी जुड़े। इसके साथ ही उन्होने नाटक, गीत एवं पुस्तके लिखना भी आरम्भ कर दिया। उनकी पुस्तकों की भाषा बहुत सरल थी जिससे लोग बहुत आकृष्ट हुए। उनकी लिखी हुई  किताबें वाराणसीहावड़ा एवं छपरा से प्रकाशित हुईं। १० जुलाई सन १९७१ को चौरासी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। 
लोकनाटक : भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित बिदेशिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा, कलयुग प्रेम, गबर घिचोर, गंगा स्नान (अस्नान), बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार, कलियुग-प्रेम, राधेश्याम-बहार, बिरहा-बहार,  नक़ल भांड अ नेटुआ के इत्यादि नाटक आज भी लोकप्रिय हैं। 
अन्य रचनाएँ : उनकी अन्य कई रचनाएँ शिव विवाह, भजन कीर्तन: राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन: कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बुढशाला के बयाँ, चौवर्ण पदवी, नाइ बहार, शंका समाधान, विविध आदि आज भी बेहद पसंद की जाती हैं।

महान कवि, लोक गायक व अभिनेता भिखारी ठाकुर  को ४४वाँ पुण्य तिथि कोटि कोटि नमन !!