Tuesday 28 April 2015

भोजपुरी सिनेमा के तीसरे दौर की पहली भोजपुरी फिल्म संईया हमार : सुपर स्टार बने रवि किशन

(रवि किशन & अर्पिता पाल)
भोजपुरी सिनेमा का सुनहरा हर एक दौर  उत्सुकता भरा हुआ  है। भोजपुरी सिनेमा के इतिहास के तीसरे दौर की चर्चा करते हुए कई अनकहे तथ्य जेहन में उतर  आते है।  आज हम भोजपुरी सिनेमा के सुनहरे तीसरे दौर के शुभारम्भ की पहली भोजपुरी फिल्म का जिक्र कर रहे हैं। यह वह दौर था जब भोजपुरी भोजपुरी सिनेमा का निर्माण ठप्प सा हो गया था।  लोग भोजपुरी सिनेमा की नयी फिल्म नहीं देख पा रहे थे। ऐसे में फिल्म वितरक से फिल्म निर्माता बने मोहन जी प्रसाद ने भोजपुरी फिल्म के निर्माण और निर्देशन की योजना बनाई।         
                                                                      सन २००१ में  भोजपुरी फिल्म संईया हमार के नाम से फिल्म के निर्माण कार्य शुरू किया गया।  चूँकि मोहन जी प्रसाद अधिकतर कलकत्ता में ही रहा करते थे और वहां की फिल्म इंडस्ट्री में इनकी अच्छी पैठ थी। इसलिए सभी कलाकारों का चयन कलकत्ता के कलाकरों का किया गया।
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 
(रवि किशन & बृजेश त्रिपाठी)
भोजपुरी सिनेमा के हर एक घटना को दिन तारीख सहित कांठस्थ किये हुए वरिष्ठ अभिनेता बृजेश त्रिपाठी की अहम भूमिका रही है। जब फिल्म के हीरो की तलाश की जा रही थी तब उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिला के गबरू जवान जैसी कद काठी के स्वामी रवि किशन का चेहरा बृजेश त्रिपाठी ने मोहन जी प्रसाद के समक्ष प्रस्तुत किया और  मोहन जी प्रसाद से रवि किशन की एक ही मुलाक़ात में फिल्म के हीरो का चयन कर लिया गया। फिल्म की नायिका की भूमिका में कलकत्ता की अदाकारा अर्पिता पाल का चयन किया गया।  मुख्य खलनायक का किरदार बृजेश त्रिापाठी ने निभाया।  इस फिल्म की अधिकतर शूटिंग मार्च २००१ और अप्रैल २००१ में दो शेड्यूल में कलकत्ता और फाल्दा में पूरी की गयी थी। फिल्म का कुछ अंश की शूटिंग मुंबई में भी की गई थी।  सन २००२ में रंगों का त्यौहार होली पर्व पर यह फिल्म संईया हमार प्रदर्शित की गई। अमीरी-गरीबी, जाति-पाँति, ऊँच-नीच के भेदभाव  पर आधारित युगल प्रेम कहानी वाली यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई। 

रवि किशन के रूप में भोजपुरी सिनेजगत को एक नया सितारा मिला जो लगातार ४ साल तक कई सुपर हिट फिल्म देकर भोजपुरी सिनेमा के दूसरे सुपर स्टार का ख़िताब हासिल किया। इनकी लोकप्रियता और भोजपुरी सिनेमा के प्रति समर्पण से प्रभावित होकर मॉरीशस सरकार ने "भोजपुरी सिनेमा का महानायक रवि किशन" का ख़िताब देकर सम्मानित किया।  यह भोजपुरी सिनेमा के लिए गर्व की बात है। 

गौरतलब है कि  सन १९८० में निर्माता अशोक चन्द जैन और निर्देशक कमर नार्वी की धरती मईया फिल्म का प्रदर्शन किया गया। इस फिल्म के जरिये भोजपुरी सिनेमा के पहले सुपर स्टार कुणाल सिंह यादव का पदर्पण हुआ।  कुणाल सिंह  दो दशक (२० साल) तक अकेले सुपर स्टार रहे हैं। इनकी फिल्में आज सभी भोजपुरिया सिनेप्रेमी बड़े चाव से पूरे परिवार सहित एक साथ बैठकर देखते हैं। 






फिल्म संईया हमार के गीतकार विनय बिहारी, संगीतकार सुजीत कुमार उपाध्याय व तबुन थे।  पार्श्वगायन उदित नारायण, विनोद राठौड़, कल्पना आदि ने किया था।  मुख्य भूमिका में रवि किशन, अर्पिता पाल, बृजेश त्रिपाठी, लावली सरकार,दीपांकर डे आदि थे। मेहमान भूमिका में बॉलीवुड के नामचीन अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती थे। जहाँ रवि किशन की यह पहली भोजपुरी फिल्म थी वहीँ मिथुन चक्रवर्ती की भी पहली भोजपुरी फिल्म थी। इसके बाद मिथुन चक्रवर्ती की दूसरी फिल्म भोले शंकर आयी थी। निर्देशक और हीरो की जोड़ी के रूप में मोहन जी प्रसाद और रवि किशन लगातार कई सुपर हिट फिल्मों में साथ में काम किया है।

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Friday 24 April 2015

वीर योद्धा वीर कुंवर सिंह: 80 साल की उम्र में सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक

अस्सी साल की आयु शारीरिक रूप से लोगों को कमजोर बना देती है. इस  उम्र में लोग सारी मोहा माया का त्याग कर विरक्त जीवन यापन करना चाहते हैं. मगर इन सभी अपवादों को दर किनार कर 80 साल के अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक बने.  नव युवा जितना जोश और फुर्ती  के बलबूते इनको 80 वर्ष की उम्र में भी  अग्रेजी हुकूमत से लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है. 
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की एक झलक देखिये इस लिंक को ओपन करके - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/4DGdryYmuXM/India-s-First-War-of-Independence-1857

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के हीरो रहे जगदीशपुर के बाबू वीर कुंवर सिंह को एक  बेजोड़ व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है. अपने ढलते उम्र और बिगड़ते सेहत के बावजूद भी उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर सामना किया.
यह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह दौर था जब इस संग्राम के प्रथम नायक बने मंगल पाण्डेय ने वर्ष 1857 में विद्रोह का बिगुल बजाया था. उसी समय जहां एक तरफ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ झांसी, कालपी और ग्वालियर में अपना अभियान छेड़ रखा था तो वहीं दूसरी तरफ  गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के अग्रणी  योद्धा तात्या टोपे और नाना साहेब ग्वालियर, इंदौर, महू, नीमच, मंदसौर, जबलपुर, सागर, दमोह, भोपाल, सीहोर और विंध्य के क्षेत्रों में घूम-घूमकर विद्रोह का अलख जगाने में लगे हुए थे. वहीं पर एक और रणबांकुरा था जिसकी वीरगाथा आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है. 

स्वतंत्रता के संघर्ष की गाथा देखिये इस लिंक को ओपन करके - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/C3aVJKqhQPQ/freedom-struggle-of-India-1857-1947-part-1


जीवन परिचय : बिहार के शाहाबाद (भोजपुर) जिले के जगदीशपुर गांव में जन्मे कुंवर सिंह का जन्म 23 अप्रैल 1777 में प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में हुआ. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा हमेशा अंग्रेजों के के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ते रहे. 
बाबू कुंवर सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह जिला शाहाबाद की कीमती और अतिविशाल जागीरों के मालिक थे. सहृदय और लोकप्रिय कुंवर सिंह को उनके बटाईदार बहुत चाहते थे. वह अपने गांववासियों में लोकप्रिय थे ही साथ ही अंग्रेजी हुकूमत में भी उनकी अच्छी पैठ थी. कई ब्रिटिश अधिकारी उनके मित्र रह चुके थे लेकिन इस दोस्ती के कारण वह अंग्रेजनिष्ठ नहीं बने. 

भारत माता के अमर सपूत की पहला स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/2YuY0B5ArRc/Indian-struggle-for-freedom-1857-1947-part-1

1857 के संग्राम में बाबू कुंवर सिंह : 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबू कुंवर सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया. मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया. उन्होंने 27 अप्रैल, 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ मिलकर आरा नगर पर कब्जा कर लिया. इस तरह कुंवर सिंह का अभियान आरा में जेल तोड़ कर कैदियों की मुक्ति तथा खजाने पर कब्जे से प्रारंभ हुआ.

भारत एक खोज धारावाहिक भाग - 42 के इस लिंक में देखिये 1857 की क्रांति -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/6kLZLb5-N0s/Bharat-Ek-Khoj-Episode-42-1857-Part-1

कुंवर सिंह ने दूसरा मोर्चा बीबीगंज में खोला जहां दो अगस्त, 1857 को अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. अंग्रजों ने जगदीशपुर पर भयंकर गोलाबारी की. घायलों को भी फांसी पर लटका दिया. महल और दुर्ग खंडहर कर दिए. कुंवर सिंह पराजित भले हुए हों लेकिन अंग्रेजों का खत्म करने का उनका जज्बा ज्यों का त्यों था. सितंबर 1857 में वे रीवा की ओर निकल गए वहां उनकी मुलाकत नाना साहब से हुई और वे एक और जंग करने के लिए बांदा से कालपी पहुंचे लेकिन सर कॉलिन के हाथों तात्या की हार के बाद कुंवर सिंह कालपी नहीं गए और लखनऊ आए.
इस बीच बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे. लेकिन कुंवर सिंह की यह विजयी गाथा ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी और अंग्रेजों ने लखनऊ पर पुन: कब्जा करने के बाद आजमगढ़ पर भी कब्जा कर लिया. इस बीच कुंवर सिंह बिहार की ओर लौटने लगे. जब वे जगदीशपुर जाने के लिए गंगा पार कर रहे थे तभी उनकी बांह में एक अंग्रेजों की गोली आकर लगी. उन्होंने अपनी तलवार से कलाई काटकर नदी में प्रवाहित कर दी. इस तरह से अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर पहुंचे. वह बुरी तरह से घायल थे. 1857 की क्रान्ति के इस महान नायक का आखिरकार अदम्य वीरता का प्रदर्शन करते हुए 26 अप्रैल, 1858 को निधन हो गया. हमारे देश के ऐसे वीर योद्धा एवं प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी को हम सत सत नमन करते हैं. 

सन 1857 प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीडियो देखने के लिए लॉगिन करें -
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Wednesday 22 April 2015

अक्षय तृतीया या आखा तीज की विशेषता एवं महत्त्व

अक्षय तृतीया अथवा   आखा तीज  वैशाख  मास में शुक्ल पक्ष  की तृतीया  तिथि को कहते हैं। पौराणिक  ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों कीशुक्ल पक्षीय  तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। 


अक्षय तृतीया पर्व देखिये इस  लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/1479BBHKJSc/Akshaya-Tritiya-Festival

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी  के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया ४१ घटी २१ पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार :
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥


अक्षय तृतीया का महत्व : अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितृ पक्ष पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीयामध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

अक्षय तृतीया पर ज्योतिष विचार देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/y5vJx-Gw9w0/Akshaya-Tritiya-2015-Know-the-Puja-Muhurat-to-buy-gold

प्रचलित कथाएँ :  अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी।ख्6, अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना।ख्5, कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

अक्षय तृतीया पर विशेष देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/-Tej4SLnYFA/Akshaya-Tritiya-Part-1---What-makes-it-special-

विभिन्न प्रान्तों में अक्षय तृतीया मनाना : बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है।मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूजा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है।
शुभ कार्यों की शुभारम्भ : इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है।

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Friday 17 April 2015

रवि किशन फिर से दोहरा रहे हैं 10 साल पुराना इतिहास


भोजपुरी सिनेमा का सुनहरा तीसरा दौर शुरु करने वाले सदाबहार सुपर स्टार रवि किशन फिर से दोहरा रहे हैं 10 साल पुराना इतिहास अपनी ही आज भी सुपर हिट भोजपुरी फ़िल्म पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई के बाद "पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई 2" से।


रामायण तिवारी (जिन्हें बॉलीवुड में बड़े सम्मान के साथ अभिनेता "तिवारी जी" के नाम से जाना माना जाता है) ने 1962 में भोजपुरी सिनेमा की पहली भोजपुरी फ़िल्म गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ाईबो का निर्माण करके भोजपुरी सिनेमा का पहला दौर की शुरुआत की। उस समय श्याम/श्वेत (Black & Whit) फिल्मों का निर्माण होता था।

पहली भोजपुरी फिल्म - ‘‘गंगा मइया तोहे पियरीचढ़इबो'' एक गीत इस लिंक में -

http://www.bhojpurinama.com/video/sonwa-ke-pinjra-mein-song-of-film-ganga-maiya-tohe-piyari-chadhaibo

1979 में रिलीज पहली रंगीन भोजपुरी फ़िल्म बलम परदेसिया से भोजपुरी सिनेमा का दूसरा दौर शुरू हुआ था। 1980 में रिलीज धरती मईया से कुणाल सिंह यादव पहले सुपर स्टार बने।



भोजपुरी फिल्म धरती मईया का गीत देखिये इस लिंक में - 



 सन् 1995 से 2000 तक ना के बराबर भोजपुरी फिल्मों का निर्माण हुआ।

भोजपुरी सिनेमा के तीसरे दौर की शुरुआत रवि किशन से हुआ है। इनकी 2002 में प्रदर्शित पहली भोजपुरी फ़िल्म "संईया हमार" सुपर डुपर हुई। लगातार 4 साल तक अनेकों सुपर हिट फ़िल्म देकर रवि किशन ने सुपर स्टार का खिताब हासिल किया। 


( रवि किशन & नगमा )
सन् 2005 में रिलीज आज भी सुपर हिट फ़िल्म "पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई" तक लगातार सुपर डुपर हिट फिल्मों से भोजपुरी सिनेमा को जीवंत किया। इस फ़िल्म से अभिनेत्री नगमा ने भोजपुरी सिनेमा में भी पदार्पण कर सफलता हासिल की। रवि किशन की उपलब्धियों को देखते हुए मॉरीशस सरकार ने भोजपुरी सिनेमा का महानायक के खिताब से इनको सम्मानित किया।

( रवि किशन & शिंजिनी )

और अब 2015 में *पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई 2* से 10 पुराना इतिहास दोहरा रहे हैं। यह पहली भोजपुरी फ़िल्म है जो 17 अप्रैल को सदाबहार सुपर स्टार रवि किशन के अथक परिश्रम से सम्पूर्ण भारत के कई सिनेमाघरों में एक साथ प्रदर्शित की जा रही है। यह भी एक संयोग ही है कि "पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई 2" से सुप्रसिद्ध नर्तकी शिंजिनी भी भोजपुरी सिनेजगत में बतौर अभिनेत्री पदार्पण कर रही हैं। इस फ़िल्म से बतौर खलनायक पप्पू यादव अपनी फ़िल्मी करियर शुरू कर रहे हैं।


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Wednesday 15 April 2015

बैसाखी पर्व : किसान की खुशहाली का प्रतीक तथा ऐतिहासिक घटना दिवस




बैसाखी का पर्व हिन्दू नववर्ष का दूसरा महीना बैशाख के पहले दिन बैसाखी का पर्व भारत भर में सभी जगह मनाया जाता है। इसे दूसरे नाम से खेती का पर्व भी कहा जाता है। कृषक इसे बड़े आनंद और उत्साह के साथ मनाते हुए खुशियों का इजहार करते हैं। बैसाखी मुख्यतः कृषि पर्व है। जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है तब यह पर्व मनाया जाता है। जिसमें फसल पकने के बाद उसके कटने की तैयारी का उल्लास साफ तौर पर दिखाई देता है। लोकजीवन में बैसाखी फसल पकने का त्योहार है। फसल पकने को ग्रामीण जीवन की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। 
बैसाखी एक लोक त्योहार है। यह पर्व पूरी दुनिया को भारत के करीब लाता है। बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार है। जिसे देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले सभी धर्मपंथ के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। सूर्य मेष राशि में प्राय: (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) १३ या १४  अप्रैल को प्रवेश करता है, इसीलिए बैसाखी भी इसी दिन मनाई जाती है। वैसे बैसाखी पर्व हर साल १४ अप्रैल को मनाया जाता है, परन्तु कभी-कभी १२ - १३ वर्ष में यह त्योहार १४ तारीख को भी आ जाता है। इस वर्ष सन २०१५  में १४ अप्रैल को यह पर्व मनाया जा रहा है। 
भारत में महीनों के नाम नक्षत्रों पर रखे गए हैं।इस समय उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में दिन भर फसल की कटाई की थकान मिटाने और मनोरंजन के लिए ''चैता गीत'' खूब गाया जाता है 

 देखिये इस लिंक में चैता गीत -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/hA0FDKk9sEw/Gori%2BGori%2BToree%2BBahiyaa-%2BChaita%2B%255BFull%2BSong%255D%2BDamad%2BJi

बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा युवा पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं। इसलिए वैशाख मास के प्रथम दिन को बैसाखी कहा गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया। बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है अतः इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना, महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का शुभारंभ, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, नवरात्रों का आरंभ, सिंध प्रांत के समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल का जन्म दिवस, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक, महावीर जयंती आदि अनेक गौरवपूर्ण इतिहास वैशाख माह से जुड़ा है।

स कृषि पर्व की आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी काफी मान्यता है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक - युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। 
बैसाखी आकर पंजाब के युवा वर्ग को याद दिलाती है। साथ ही वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहां माता अपने दस
गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी।

गुरु साहेब भजन देखिये इस लिंक में


केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के अन्य प्रांतों में भी बैसाखी पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन मेले लगते हैं। लोग श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं तथा उत्तर-पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी इस दिन बिहू का पर्व मनाया जाता है। 

बैसाखी का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी विशिष्ट स्थान है। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के समीप १३ अप्रैल १९१९ में हजारों लोग जलियाँवाला बाग में एकत्र हुए थे। लोगों की भीड़ अंग्रेजी शासन के रालेट एक्ट के विरोध में एकत्र हुई थी। जलियाँवाला बाग में जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियाँ बरसाईं जिसमें करीब १०००  लोग मारे गए और २००० से अधिक घायल हुए। अंग्रेजी सरकार के इस नृशंस कृत्य की पूरे देश में कड़ी निंदा की गई और इसने देश के स्वाधीनता आंदोलन को एक नई गति प्रदान कर दी।

जलियाँवाला बाग़ कांड की एक झलक देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/l1Ge5RgkSO8/Jallianwala%2BBagh%2Bmassacre

जलियाँवाला बाग की घटना ने बैसाखी पर्व को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया। आज भी लोग जहाँ इस पर्व को पारंपरिक श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं वहीं वे जलियाँवाला बाग कांड में शहीद हुए लोगों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। 




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Saturday 11 April 2015

अब टूट रही है परम्परा, बिहार से पहले मुंबई में होने लगी है भोजपुरी फिल्म का प्रदर्शन

वर्ष २०१५ के शुरुआत के पहले महीने 9 जनवरी को भोजपुरी फिल्म दिल भईल दीवाना का प्रदर्शन मुबई के कई सिनेमाघरों में  किया गया.  निर्माता व निर्देशक अरविन्द चौबे की यह फिल्म दर्शकों को बहुत पसंद आने वाली है। इस फिल्म के सह निर्माता निराला फिल्म्स हैं। मुख्य कलाकार - विराज भट्ट, मोनालिसा, अरविन्द अकेला कल्लू, अर्चना सिंह, निशा दूबे, प्रियंका पंडित, संजय पाण्डेय, अरुण सिंह, जसवंत कुमार, अनूप अरोरा, माया यादव, विनोद मिश्रा, अलोक यादव, सीमा सिंह इत्यादि हैं तथा मेहमान भूमिका में दीपक भाटिया हैं। संगीत - अविनाश झा, गीत - प्यारे लाल यादव, कृष्णा बेदर्दी, आर आर पंकज व मनोज मतलबी, लेखक - लालजी यादव, छायांकन - रवि चन्दन, संकलन - जीतेन्द्र सिंह (जीतू), मारधाड़ - दिलीप यादव, नृत्य निर्देशन - कानू मुखर्जी व संजय कोर्बे का है। 

दिल भईल दिवाना का गीत रिकॉर्डिंग के समय डांस देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/video/kaluaa-dancing-with-hot-actress


इसके अलावा  दीपक जैन प्रस्तुत व डीजे मूवी इन्टरटेनमेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म को दर्शकों के द्वारा मिल रहे प्यार से यह साबित हो गया है कि तू मेरा हीरो बहुत ही उम्दा एवं सम्पूर्ण पारिवारिक दर्शनीय फिल्म है.  27 मार्च से मुम्बई के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई भोजपुरी फिल्म तू मेरा हीरो को अपने पहले ही शो से बम्पर ओपनिंग मिली हैऔर दर्शकों का झुकाव फिल्म के प्रति इस कदर है कि फिल्म का लगातार सभी शो को अच्छा प्रतिसाद मिला. फिल्म का प्रदर्शन जिस भी सिनेमाघर में हुआ है वहां पर सिनेमाप्रेमियों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है वहीं इस फिल्म में भोजपुरी सुपर स्टार खेसारी लाल यादव और रितिका की जोड़ी दर्शकों को खूब पसंद किया जा रहा है. इस फिल्म के गानों को भी  दर्शकों ने सहर्ष पसंद किया है और स्वीकारा है. 
फिल्म के निर्माता दीपक जैन हैं. फिल्म के कथाकार व निर्देशक रमाशंकर हैं. पटकथा रमाशंकर व अरविन्द तिवारी  ने लिखा है तथा संवाद अरविन्द तिवारी का है.  गीतकार प्यारेलाल यादव कविअरविन्द तिवारीआजाद सिंहजाहिद अख्तर के लिखे गीतों को संगीत से सजाया है घुंघरू ने. छायांकन जगविन्दर सिंह हुंदलनृत्य निर्देशक पप्पू खन्नाकानू मुखर्जी व अन्थोनीकला भास्कर तिवारी और मारधाड़ हीरालाल यादव का है. मुख्य कलाकार - खेसारी लाल यादवरितिकासमर्थ चतुर्वेदीनीरज पाण्डेयसंजय वर्मावैभव रायप्रिया सिंहवाहिद हाशमीमाया यादवजे पी सिंहश्रद्धा नवलप्रिया पाण्डेयइमरान खानसुनीता सिंहहिमताज अलीहीरा लाल यादवउमेश सिंह और संजय पाण्डेय हैं. आईटम गीत पर नृत्य किया है रानू पाण्डेय ने.

और अब इस शुक्रवार 10 अप्रैल को भोजपुरी फिल्म जीना तेरे लिए का प्रदर्शन किया है.
इंद्रा फिल्म्स इंटरनेशनल के बैनर तले बनी फिल्म 'जान तेरे लिए ' का प्रदर्शन किया गया. इस फिल्म में सभी गाने काफी कर्णप्रिय है जिसमे संगीत अविनाश झा और गीत प्यारेलाल यादव का दिया हुआ है.फिल्म में गायक और नायक राकेश मिश्रा मुख्य भूमिका निभा रहे है और इस फिल्म में उन्होंने भी गाना गाया है .राकेश के अपोजिट इस फिल्म में शुभी शर्मा है और यह फिल्म पूरी तरह से एक्शन ,रोमांस और इमोशनल से भरी हैं जो दर्शको को बेहद पसंद आई है. इस फिल्म के निर्देशक सुजीत कुमार हैं. केन्द्रीय भूमिका में भोजपुरी सिनेस्टार राकेश मिश्रा, शुभी शर्मा एवं मनोज महेश्वर, अलोक यादव तथा बृजेश त्रिपाठी हैं.

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Tuesday 7 April 2015

प्रसिद्ध सितार वादक व संगीतज्ञ भारत रत्न पंडित रवि शंकर की जयंती : ७ अप्रैल १९२० ई०




विश्व प्रसिद्ध सितार वादक  पंडित रवि शंकर ने सम्पूर्ण भारत में ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में भी अपनी अद्भुत संगीत कला को प्रस्तुत किया है। उन्होंने हिंदी सिनेमा के कई फिल्मों में भी बतौर संगीतकार कई गीतों के संगीत से सजाया है। प्रसिद्ध सितार वादक और संगीतज्ञ  पंडित रवि शंकर का जन्म ७ अप्रैल १९२० ई० में बनारस, उत्तर प्रदेश में हुआ था । दुर्लभ संयोग वाली तिथि १२  दिसंबर २०१२ की सुबह भारत देश के लिये दुखद समाचार लेकर आई. भारत के संगीत राजदूत पंडित रविशंकर  का अमेरिका के सैन डिएगो में निधन हो गया। उस समय  वो 92 साल के थे।  उन्होंने भारतीय समयानुसार सुबह ४.४० मिनट पर अंतिम सांस ली। उन्होंने विश्व के कई मह्त्वपूर्ण संगीत उत्सवों में हिस्सा लिया है। पंडित रवि शंकर का  युवावस्था यूरोप और भारत में अपने भाई उदय शंकर  के नृत्य समूह के साथ दौरा करते हुए बीता है। उस समय उन्हें पहचान के साथ ही साथ  बहुत कुछ सीखने को भी मिला। जिसके फलस्वरूप रवि शंकर ने संगीत जगत में कड़ी मेहनत और लगन से कामयाबी का परचम लहराया। 

 पंडित रवि शंकर का सजीव राग खमाज देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/9xB_X9BOAOU/Ravi-Shankar-Anoushka-Shankar-Live-Raag-Khamaj-1997-

शिक्षा : भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा  रविशंकर ने  उस्ताद अल्लाऊद्दीन खाँ से प्राप्त की। वे अपने बड़े भाई उदयशंकर की तरह नृत्यकला की ऊंचाइयां छूना चाहते थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।अठारह साल की उम्र में पंडित जी ने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू कर दिया। पं. रविशंकर उस्ताद अलाउद्दीन खां से सितार की दीक्षा लेने मैहर, मध्य प्रदेश पहुंचे और खुद को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया।
उन्होंने अपनी प्रतिभा से गुरु का नाम विश्वभर में ऊंचा किया। सितार और पं. रविशंकर एक-दूसरे के पर्याय बन गए। युवावस्था यूरोप और भारत में अपने भाई उदय शंकर  के नृत्य समूह के साथ दौरा करने के अलावा रविशंकर ने सन 1938 से 1944 तक सितार का गहन अध्ययन किया। सितार वादन की बारीकियाँ सीखने के बाद फिर स्वतंत्र तौर से काम करने लगे। 

पंडित रवि शंकर का विदेश में राग अल्हैया का शो देखिये इस लिंक को ओपन करके - 
जीवन परिचय : संगीत के क्षेत्र करियर बनाने बाद में उनका विवाह भी उस्ताद अल्लाऊद्दीन खाँ की बेटी अन्नपूर्णा से हुआ था। उनके परिवार में एक पुत्र शुभेन्दु शंकर, दो पुत्रियाँ अनुष्का शंकर एवं नोरोह जोन्स हैं। उनकी पहली शादी गुरु अलाउद्दीन खां की बेटी अन्नपूर्णा से हुई। बाद में उनका तलाक हो गया। उनकी दूसरी शादी सुकन्या से हुई, जिनसे उनकी एक संतान है। इसके अलावा उनका संबंध एक अमेरिकी महिला सू जोन्स से भी रहा, जिनसे उनकी एक बेटी नोरा जोन्स हैं। 
उन्होंने सू से शादी नहीं की। पंडितजी की दोनों बेटियां अनुष्का शंकर औऱ नोरोह जोन्स, पंडितजी की संगीत विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। पंडित रविशंकर को मैगसैसे, तीन ग्रैमी अवॉर्ड सहित देश-विदेश के न जाने कितने पुरस्कार मिले। १९८६ से १९९२  तक वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

पं. रविशंकर का हिंदुस्तानी क्लासिकल सितार सुनिए इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/mQdScf6wF3k/Pandit-Ravi-Shankar-Monument-of-Strings-Hindustani-Classical-Audio-Jukebox-Sitar


संगीत के क्षेत्र में करियर बनाने के बाद पंडित रवि शंकर ने सत्यजीत रे की फिल्मों में संगीत भी दिया। १९४९ से १९५६  तक उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में बतौर संगीत निर्देशक काम किया। १९६० के बाद उन्होंने यूरोप के दौरे शुरु किये और येहूदी मेन्यूहिन व बिटल्स ग्रूप के जॉर्ज हैरिशन जैसे लोगों के साथ काम करके अपनी खास पहचान बनाई। उनकी बेटी अनुष्का शंकर सितार वादक हैं तो दूसरी बेटी नोरोह जोन्स भी शीर्षस्थ गायिकाओं में शुमार की जाती हैं। पंडित रवि शंकर को सन् १९९९  ई० में भारत रत्न  से सम्मानित किया गया। रवि शंकर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार  द्वारा सन् १९६७  ई० में पद्म भूषण  से सम्मानित किया गया था। 


भारत रत्न  पंडित रवि शंकर का सितार वादन देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/rmOIh1lqWzc/Ravi-Shankar-Sitar

भारतीय संगीत को दुनिया भर में सम्मान दिलाने वाले भारत रत्न और पद्मविभूषण से नवाजे गये पंडित रविशंकर को तीन बार ग्रैमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संगीत के संलयन में भी बड़ी भूमिका निभाई। उन्हें पूरी दुनिया में शास्त्रीय संगीत में भारत का दूत माना जाता था। उनके परिवार में  पत्नी अन्नपूर्णा देवी तथा पुत्र शुभेन्दु  शंकर  संगीतकार के रूप जाने जाते हैं। 

 प्रसिद्ध सितार वादक व  संगीतज्ञ भारत रत्न  पंडित रवि शंकर के सितार वादन के अधिक से अधिक वीडियो देखने के लिए लॉगिन कीजिये -
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