Tuesday 30 September 2014

महाअष्टमी : महागौरी की पूजा

मां दुर्गा के आठवें रूप माँ महागौरी की पूजा का विशेष महत्त्व है। नवरात्रि के इस पावन तिथि को महाअष्टमी कहा जाता है। सम्पूर्ण भारत में माँ दुर्गा  के नौ रूपों की  पूजा - अर्चना नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक की जाती है। ये नौ दिन हिन्दू धर्म  में बहुत ही पवित्र और विशेष फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं। 'महाअष्टमी' के दिन माँ दुर्गा के आठवें रूप "महागौरी"  की पूजा होती है। इनकी उपमा शंख, चक्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनके सभी आभूषण  और वस्त्र सफ़ेद रंग के हैं, इसीलिए उन्हें 'श्वेताम्बरधरा' भी कहा गया है।

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http://www.bhojpurinama.com/video/mai-chaukiya-ke-darbariya-kunal-films

महागौरी की पूजा कल्याणकारी होती है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है और शत्रुओं का नाश होता है। मां दुर्गा की आठवीं शक्ति देवी महागौरी अत्यंत सौम्य और शीघ्र प्रसन्न होने वाली है। पूरे देश में नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है और मां दुर्गा के दर्शन के लिए पंडालों में भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है। सार्वजनिक रूप से पूजा करने के लिए पंडालों को भव्य और सुंदर ढ़ंग से सजाया जाता है।

माँ शेरावाली का भजन देखिये एवं सुनिए इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/video/sheravali-ke-chavi 

शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व दुर्गा पूजा को मुम्बई, महाराष्ट्र और गुजरात में गरबाडांडिया के नाम से मनाया जाता है। पूरे नौ दिन तक शाम के समय से देर रात तक समूह में गोलाकार नाचते झूमते हुए गरबा खेलते हैं तथा मां की आरती करके प्रसाद वितरण करके समापन किया जाता है। 

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Friday 26 September 2014

नवदुर्गा रहस्य :

माँ अम्बे के नौ रूप की पूजा पूरे नौ दिन तक श्रद्धा - भक्ति  से किया जाता है। आईये जानते माता भगवती, जगत जननी के नवदुर्गा रहस्य :-

1 शैलपुत्री-  मां शैलपुत्री प्रकृति की ‘क्रियात्मक’ तथा ‘भू’ तत्वात्मक दो भावों की संचालिका है। शैल-पुत्री अर्थात् पर्वत की पुत्री। पर्वत भू-तत्वात्मक है। अर्थात स्थूल से उत्पन्न होने वाली गति। ‘पृथ्वी’ तत्व की परिचायिका है। स्थूल शरीर रूपा, धारक शक्ति तथा धैर्यवती तथा परम सहशीलता हैं।






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2 ब्रह्मचारिणी- ब्रह्म’ जैसी चर्चा वाली, ब्रह्रमयी ‘जल’ तत्व को हस्तगत रखने वाली परम तेजोमयी शक्ति है। परम वीर्यमयी, चरित्ररूपा शक्ति पुंज है। वीर्य रक्त से बनता है अर्थात रक्त का रूपांतर है। प्रकृति के ‘क्रियात्मक अंग’ तथा जल-तत्वात्मक शक्ति रूपा है।



3 चंद्रघंटा- ‘अग्नि’ तत्व की तेजोमयी मूर्ति ‘मां चंद्रघंटा’ अमृतमयी, स्वब्रह्मामयी रूपिणी है। चंद्र में प्रकाश सूर्य द्वारा प्रकाशित है। चंद्र अर्थात सोमरस प्रदान करने वाली, श्रेष्ठमयी, घण्टा अर्थात ‘अग्नि’ शब्द ध्वनि का परिचायक है, भगवती का अग्निमय, क्रियात्मक स्वरूप है। घण्टे से ‘ब्रह्मनाद’ व अनहत नाद स्वरूपिणी हैं।


4 कूष्माण्डा- ‘वायु’ तत्व की वेगमयी शक्ति माँ ‘कूष्माण्डा’ गत्यात्मक स्वरूपिणी हैं। ‘कूष्माण्ड’ अर्थात गति-युक्त, अण्ड, ‘वायु उत्पन्न करने वाली माँ संसार में निष्क्रियता, तमस का नाश कर ‘चरैवति-चरैवति’ का संदेश प्रदान करती है। समस्त जगत-चराचर की स्वामिनी माँ की जगत की उत्पत्ति, पोषण व विलय का कारण भूत है।

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5 स्कन्दमाता- ‘आकाश’ तत्व की स्वामिनि माँ स्कन्दमाता स्वामी कार्तिकेय की जननी है। नवदुर्गाओं में बायीं ओर व दायीं ओर चार-चार कन्यायो तथा बीच में स्कन्दमाता प्रतिष्ठित हैं। सभी तत्वों की मूल बिन्दु हैं। एक ओर पृथ्वी, जल, अग्नि व वायु यह चार तत्व है। कुं + मरयति इति कुमार अर्थात कुत्सिज्ञ विचारों का जो त्याग करे वही कुमार है। दूर विचार का काम, क्रोध, लोभ-मोह आदि अहंकार का जो त्याग करे वहीं कुमार है। ऐसा भक्त जब इस स्थिति में स्थित होकर माँ को पुकारता है तब माता तक्षण उसे ‘कुमार’ की भांति अपनी गोदी में उठा लेती हैं।

6 कात्यायनी- ‘मन’ तत्वात्मक स्वरूप वाली महिषासुर मर्दिनी विश्व के सृजन, पालन व संहार की अधीश्वरी हैं। जीवन व मृत्यु का कारण हमारे मन के भाव ही हैं। समस्त मानसिक, दैविक व दैहिक शक्ति की स्वामिनि माँ कात्यायनी कात्यायन ऋषि की तपस्या के कारण वहां प्रकट हुई थी। समस्त आसुरी शक्ति अविद्या का नाश कर माँ कात्यायनी भक्त को मुक्ति प्रदान करती है।

माँ थावे का भजन देखिये व सुनिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/video/chala-chala-thawe-nagariya--2
7 काल-रात्रि- बुद्धि तत्वात्मक स्वरूपा, प्रकृति की ‘क्रियात्मक’ शक्ति है। काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है।
माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचयक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है। सत्य पूर्ण नग्न व सभी आडम्बरों से शून्य होता है।

8 महागौरी- ‘चित्त-तत्वात्मक’ स्वरूपा, महागौरी भगवान शिव की शक्ति हैं। चैतन्यता प्रदान करने वाली ‘चित्त-स्वरूपिणी’ भगवती चैतन्यमयी परम गौर वर्णी है। अंधकार का नाश करने वाली, परम ज्योर्तिमयी प्रकाशमयी शक्ति ही ‘महा गौरी’ वृक्षभ आसन पर आसीन है। वृषभ धर्म का स्वरूप है। धर्म ही अर्थ, काम व मोक्ष को प्रदान करने वाली है। सफेद वस्त्र धारण करने वाली, परम पवित्र भगवती महागौरी हमारे चित्र के समस्त जड़ता अविद्या तमसता का अंत कर चैतन्य का प्रकाश करती हैं।
9 सिद्धिदात्री- सिद्धि प्रदान करने वाली ‘अहं’ तत्वात्मक स्वरूपा माँ सिद्धिदात्री स्वयं का बोध कराती है। बाहर के समस्त जड़ता, अविद्या तथा पंच पाशों का नाश कर ध्यान की ऊँचाइयों को प्रदान करती है। ध्यानस्य होना, समर्पण का भाव हृदय में हो, अहं का विसर्जन होना तथा अपने अहं को परम शक्ति दुर्गा माँ में लीन होना ही परम सिद्धि को प्राप्त करना है। यही सिद्धिदात्री माँ की आराधना का गूढ़-रहस्य है।


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Wednesday 24 September 2014

नवरात्रि महापर्व : देवी माँ के नौ रूप का पूजन

नवरात्रि महापर्व का हिन्दू समाज में ही महत्त्व है। साल में  दो बार मनाया जाने वाला यह पवित्र - पावन महापर्व पूरे नौ दिन- नौ रात तक श्रद्धा - भक्ति  से आरती  करके हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिन्दू वर्ष के शुरुआत के पहले माह चैत्र में मनाया जाने वाला महापर्व नवरात्रि से जहाँ हिन्दू पर्व की शुरुआत होती है वहीँ ठीक छः माह के बाद सातवाँ महीना क्वार  दूसरे पक्ष - शुक्ल पक्ष में पूरे नौ दिन तक मनाया जाता है।  जिसे दुर्गा पूजा के  नाम से भी मनाया जाता है। 

माता जी का भजन देखें इस लिंक को क्लिक करके  -

नौ दिन तक घट स्थापना तथा झाँकी सजाकर घरेलू व समूहिक रूप से दुर्गा माता की बड़ी-बड़ी मूर्तियों स्थापित करके भजन, आरती, पूजन करके  मनाया जाता है।

माता जी का वंदना  देखें इस लिंक को क्लिक करके  - 

इस बार यह नवरात्रि महापर्व 25  सितम्बर से 3 अक्टूबर तक मनाया जायेगा।
दुर्गा माता जी के सभी नौ रूप का वर्णन अगले ब्लॉग शुक्रवार को किया जायेगा। 

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Tuesday 9 September 2014

गणेश चतुर्थी उत्सव -


महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में गणेश चतुर्थी की पूजा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे ग्यारह दिन तक श्रद्धा - भक्ति के साथ मनाये जाने वाले इस महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व का बड़ा महत्व है। यह पर्व घरेलू उत्सव तथा सार्वजनिक उत्सव के रूप में पूजा, अर्चना, भजन, आरती के साथ हर्सोल्लाष साथ  मनाया जाता है। प्रसाद में श्री गणेश जी मन पसंद भोग मोदक चढ़ाया जाता है। पूरे भारत में मनाया  जाने वाला यह पावन पर्व महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे का गणेशोत्सव बहुत ही प्रसिद्ध है। यह उत्सव हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से ग्यारह दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।
गणेशजी भगवान की आरती देखने व सुनने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए. 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/D_2llhhAzYw/arti-ganesh-ji-ki

गणेशोत्सव - 
गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र में  मंगलपूर्ति के नाम से पूजा जाता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है।मैसूर  तथा तंजौर  के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।
गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथमा चलायी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भी गणेश जी  की उपासना किया करते थे। 

आजादी की लड़ाई में गणेशोत्सव का उपयोग  -
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में ‘मित्रमेला’ संस्था बनाई थी। इस संस्था का काम था देशभक्तिपूर्ण पोवाडे (मराठी लोकगीतों का एक प्रकार) आकर्षक ढंग से बोलकर सुनाना। इस संस्था के पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी। कवि गोविंद को सुनने के लिए लोगों उमड़ पड़ते थे। राम-रावण कथा के आधार पर वे लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होते थे। उनके बारे में वीर सावरकर ने लिखा है कि कवि गोविंद अपनी कविता की अमर छाप जनमानस पर छोड़ जाते थे। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद मेंनागपुर, वर्धा, अमरावती  आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेज भी इससे घबरा गये थे। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी थी। रपट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में वीर सावकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय,  मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू आदि प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे।

गणेश जी का मंत्र सुनिए इस लिंक में

गणेश विसर्जन -
ग्यारह दिनों तक हर्सोल्लाष के साथ घरों में तथा सार्वजनिक पंडालों में श्रद्धा भाव से पूजा, अर्चना, भजन, आरती के साथ उपासना करने के बाद नदी अथवा समुद्र के गहरे पानी में गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। सभी लोग आतिशबाज़ी, बैंडबाजा के सड़कों पर नाचते गाते हुए तथा "गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" का नारा  लगाते हुए गणेश विसर्जन के साथ पर जाते हैं। 


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