Friday 28 March 2014

नवरात्रि : हिन्दू वर्ष का प्रथम त्यौहार


भारत देश में हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार चैत्र माह के अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से नवरात्रि आरम्भ हो जाती है। हिन्दू वर्ष के प्रथम महीने का पहला त्यौहार "वासन्तिक नवरात्रि पर्व" के रूप  में नौ दिनों तक मनाया जाता है। इस  दौरान आदिशक्ति माता जगदम्बा के नौ विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। ये नौ दिन वर्ष के सर्वाधिक शुद्ध एवं पवित्र दिवस माने गए हैं।                          माँ अम्बे का भजन देखने के लिए यह लिंक क्लिक करें- 
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नवरात्रि पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है – हिन्दू वर्ष के आरम्भ में अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस वासन्तिक नवरात्रि आते हैं जबकि शीत ऋतु बीत चुकी होती है और ग्रीष्म ऋतु आरम्भ होने वाली होती है। प्रचलित अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार ये समय साधारणतः मार्च-अप्रैल के महीनों के दौरान आता है।
माता जी का भजन देखें इस लिंक में -

दूसरे नवरात्रि जिन्हें शारदीय नवरात्रि  के नाम से जाना जाता है। वर्षा ऋतु बीत जाने के बाद तथा शीत ऋतु के आगमन से पहले अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से मनाए जाते हैं। अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार सितम्बर-अक्तूबर के दौरान शारदीय नावरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
वासन्तिक नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा  के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है जिन्होंने सृष्टि के आरम्भ से लेकर अभी तक इस पृथ्वी लोक पर विभिन्न लीलाएँ की थीं। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। वासन्तिक नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे क्रमशः इस प्रकार हैं – पहला - शैलपुत्री, दूसरा - ब्रह्माचारिणी, तीसरा - चन्द्रघन्टा, चौथा - कूष्माण्डा, पाँचवा - स्कन्द माता, छठा - कात्यायिनी, सातवाँ - कालरात्रि, आठवाँ - महागौरी, नौवां - सिद्धिदात्री।

माँ दुर्गा भवानी की  महिमा देखिए इस लिंक क्लिक करके -

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Tuesday 25 March 2014

फगुआ गीत से किया जाता है नये साल का स्वागत



हिन्दी महीना के  नये साल का स्वागत फगुआ गीत से किया जाता है जिसे होली के रूप में मनाया जाता है।
पुराने साल की अंतिम रात को होलिका दहन के रूप लकड़ियों के ढेर को जलाकर नाच गाना के साथ विदाई दी जाती है।
सुबह सवेरे नई ताजगी और नए जोश के साथ रंग बिरंगी होली खेलते हुए तथा फगुआ (फाग) गाते हुए घर-घर जाकर सामूहिक नाच गाना करते हुए  मनाया जाता है। पुरुष लोग बेलवरिया, जोगीरा सररररररररा आदि आदि गीत गाते हुए महिलाओं को ललकारते हैं और महिलाएं बाल्टी भर - भरकर रंग पुरुषों पर डालती है।
रंग गुलाल और फागुआ  के साथ  भाँग की घोटाई तथा खूब जमके भाँग पीने का भी आनंद उठाया जाता है। पुरुष उअर महिलाओं में होड़ भी लगती नही कि कौन ज्यादा भांग पी सकता है। भंग के  रंग का आनंद तो तब आता है जब भाँग का नशा सर पर सवार हो जाता है।

फगुआ में भाँग की घोटाई और भाँग पीने का अलग ही आनंद है।
 देखिये इस लिंक में भगवान शिवजी का पार्वती जी से भांग की मांग -
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फ़िल्म - सिलसिला के लिए सदी के महानायक - अमिताभ बच्चन द्वारा  गीत - "रंग बरसे भीजे चुनार वाली  ……"  आज भी बड़े चाव से गाया तथा सूना जाता है।




होली, फगुआ गीत सुनने व देखने के लिए लॉगिन कीजिये -
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Friday 21 March 2014

हिन्दी नववर्ष का आरम्भ है : फगुआ

भारत देश में हर ख़ुशी के लम्हों को त्यौहारों से जोड़कर मनाया जाता है। इसी  वजह से भारतवर्ष को त्यौहारों का देश भी कहा जाता है। भारत देश की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ सभी धर्मों के लोग "सर्व धर्म समभाव'' की सदभावना के साथ रहते हैं। इसीलिए यह नारा लगाया जाता है - "हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, आपस में हैं भाई भाई''। जिस तरह से हिन्दू धर्मं में जो महत्व 'होली' का है वही महत्व इस्लाम में "ईद' का तथा ईसाईयों में 'क्रिसमस' का है।

फाल्गुन मास की शुरुआत बसंत ऋतु के रूप में होती है। वसंत के स्वागत में प्रकृति का कण-कण खिलने लगा है। पेड़-पौधों-फूलों पर बहार, खेतों में सरसों का चमकता सोना, गेहूं की सुडौल बालियां, आम के पेड़ों पर लदे बौर ऋतुराज के अभिनंदन में नत मस्तक हो रहे हैं। मौसम सुहाना हो गया है। न अधिक गर्मी है न अधिक ठंड। पूरे वर्ष को जिन छः ऋतुओं में बांटा गया है, उनमें वसंत मनभावन मौसम है।
फाल्गुन माह की अंतिम रात (पूर्णिमा) पूनम की रात को होली जलाकर ख़ुशी मनायी जाती है। साल की आखिरी रात होती है। सुबह नयी ताज़गी  साथ चैत्र महीने का पहिला दिन नववर्ष का आरम्भ होता है जिसे रंग गुलाल के साथ लोगो से गले मिलकर  होली के रूप में मनाया जाता है।
नववर्ष की शुरुआत का महत्व :- 

कोयल की कुंतर पुकार
बाग-बगीचों में बौराए हैं आम।
हर घर में सजी है गुड़ी 
नववर्ष की आई है सुहानी घड़ी।।
हिन्दी नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियां मार्च और अप्रैल के महीनों में आती हैं। इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। फिर भी पूरा देश चैत्र माह में ही नववर्ष मनाता है और इसे नवसंवत्सर के रूप में जाना जाता है।


इस माह में चैता का विशेष महत्त्व है देखिये इस लिंक में - 
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गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी, नवरेह, चेटीचंड, उगाड़ी, चित्रेय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नवसंवत्सर के आसपास आती हैं। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है।

चैता गीत को देखें व सुनने के लिए  को क्लिक किजिए -

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Tuesday 18 March 2014

भारत देश के विभिन्न राज्यों में अलग अलग परम्पराओं में मनायी जाती है : होली


 भारत देश को त्यौहारों का देश के रूप में भी जाना जाता है। होली बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। यह पर्व हिन्दू पंचांग  के अनुसार फाल्गुन मास  की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है।यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता हैं। 
होलिका जलाने के अगले  दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश तथा बिहार की  होली (फगुआ) : पूरी तरह से भारतीय संस्कार को प्रस्तुत करते हुए भोजपुरी में ढोल, मंजीरा, करताल, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्रों बजाते एवं  फगुआ गायन करते पूरे गाँव में फेरी लगाते हैं तथा रंग अबीर लगाकर बड़े बुजर्गों का पाँव छूकर आशीर्वाद  लेते हैं। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।
बृज की होली : यहाँ की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं।
दिल्ली वालों की दिलवाली होली : दिल्ली की होली तो सबसे निराली है क्योंकि राजधानी होने की वजह से यहाँ पर सभी जगह के लोग अपने ढंग होली मानते है जो आपसी समरसता और सौहार्द का स्वरूप है, वैसे दिल्ली में नेताओं की होली की भी खूब धूमधाम  से  होती है।
राजस्थान की होली : यहाँ मुख्यत: तीन प्रकार की होली होती है। माली होली- इसमें माली जात के मर्द, औरतों पर पानी डालते है और बदले में औरतें मर्दों की लाठियों से पिटाई करती है। इसके अलावा गोदाजी की गैर होली और बीकानेर की डोलची होली भी बेहद ख़ूबसूरत होती है।
पंजाब की होली : होला मोहल्ला पंजाब में होली को 'होला मोहल्ला' कहते है और इसे निहंग सिख मानते है। इस मौके पर घुड़सवारी, तलवारबाज़ी आदि का आयोजन होता है।
महाराष्ट्र की रंगपंचमी : यहाँ पर होली के त्यौहार को रंगपंचमी के नाम से मनाया जाता है। पूरन पोली महाराष्ट्र का विशेष भोजन है। लोग रंगों की सामूहिक होली खेलते हैं तथा  रंग अबीर लगाकर बड़े बुजर्गों का पाँव छूकर आशीर्वाद लेते हैं। गोवा की शिमगो, गुजरात की गोविंदा होली, और पश्चिमी पूर्व की 'बिही जनजाति की होली' की धूम भी निराली है।
कोलकाता : कोलकाता की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यहाँ मिली-जुली आबादी वाले इलाक़ों में मुसलमान और ईसाई तबके के लोग भी हिंदुओं के साथ होली खेलते हैं.
वे राधा-कृष्ण की पूजा से भले दूर रहते हों, रंग और अबीर लगवाने में उनको कोई दिक्क़त नहीं होती। कोलकाता का यही चरित्र यहाँ की होली को सही मायने में सांप्रदायिक सदभाव का उत्सव बनाता है। शांतिनिकेतन की होली का ज़िक्र किये बिना दोल उत्सव अधूरा ही रह जाएगा।
बंगाल  उड़ीसा की होली : बंगाल में होली को 'डोल यात्रा' व 'डोल पूर्णिमा' कहा जाता है। होली के दिन श्री राधा एवं  कृष्णा की प्रतिमाओं डोली में बैठकर पूरे शहर में  घुमाते हैं और औरतें नृत्य करती हैं। इसे बसंत पर्व भी कहते हैं। इसकी शुरुआत रवीन्द्र नाथ टैगोर ने शान्ति निकेतन में की थी।
उड़ीसा में भी होली को  'डोल पूर्णिमा'  कहते हैं। यहाँ पर भगवान जगन्नाथ जी की  डोली निकाली जाती है।
कर्नाटक में  होली समारोह - कामना हब्बा : यहाँ  यह त्योहार कामना हब्बा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान  शिव  ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जला दिया था। इस दिन कूड़ा-करकट फटे वस्त्र, एक खुली जगह एकत्रित किए जाते हैं तथा इन्हें अग्नि को समर्पित किया जाता है। आस-पास के सभी पड़ोसी इस उत्सव को देखने आते हैं।

नोट : होली से सम्बंधित गीत देखने लिए लॉगिन करें - www.bhojpurinama.com







Friday 14 March 2014

होली - रंगों का त्यौहार : भारत के अलावा विदेशों में भी मनाया जाता है*




मारा देश भारत कृषि प्रधान होने के साथ ही साथ त्योहारों का भी देश कहा जाता है। हम भारतवासी सभी प्रमुख त्यौहार के हर पल का आनन्द जी भरके उठाते हैं। हिंदी का  पहिले महीने के पहले ही दिन से ही शुरू हो जाता है त्यौहार एवं पर्व जिसे हम होली के त्यौहार के रूप में रंग, गुलाल और अबीर के साथ से एक दूसरे से गले मिलकर मनाते हैं। साल का अंतिम महीना फाल्गुन की अंतिम रात को होलिका दहन किया जाता है सुबह सबेरे से शुरू हो जाता है होली का हुड़दंग और होली  मिलन।



अमेरिका -  इस देश में होबो नाम से मस्ती वाला त्यौहार मनाया जाता है। अमेरिका में इस दिन ऊंटपटांग अतरंगी कपड़े पहनकर लोग बेहूदगी किया करते हैं। जो ज्यादा बेहूदगी करता है उसे पुरस्कृति किया जाता है। 
मारीशस -  यहाँ 60% भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं। अफ़्रीकी महाद्वीप में बसे इस देश  में पूरी तरह से भारतीय परम्परा के अनुसार होली का त्यौहार मनाया जाता है। 15 दिन पहले से ही होली की तैयारी शुरू हो जाती है। होलिका दहन करने के दूसरे दिन धूमधाम से रंग गुलाल के साथ होली मनायी जाती है। 
रूस - इस देश में भी भारतीय होली के समान मनाया जाता है। एक दूसरे को अबीर, गुलाल लगाके गले मिलते हैं।
इटली - अन्न की देवी फ़्लोरा को प्रसन्न करने के लिए मई महीने में पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर आतिशबाज़ी के साथ ऊंचे स्थान पर लकड़ियाँ एकत्र करके जलाते हैं और नाच गाकर खुशियाँ मनाते हैं। 
इंग्लैंड -  यहाँ गाइ फॉक्स डे के रूप में 5 नवम्बर को फॉक्स का पुतला जलाकर हर्षोल्लास के साथ होली पर्व मनाया जाता है।
श्रीलंका - भारत देश की तरह श्रीलंका में होली का त्यौहार मनाया जाता है। अबीर, गुलाल, रंग तथा पिचकारी की दुकानें सजायी जाती है। लोग भेदभाव मिटाकर एक दूसरे से मिलते हैं।
जर्मनी - इस दिन लड़के-लड़कियाँ  जर्मनी देश के ओल्डबर्ग शहर में घास-फूस का पुतला बनाकर जलाते हैं। आग के समाप्त होते ही अपने से बड़े लोगों के कपड़ों पर धब्बा लगाते हैं और एक दूसरे को मुँह चिढ़ाते हैं।
म्यांमार - भारत का पड़ोसी देश बर्मा (म्यांमार) में होली का पर्व को तिजान के नाम से मनाया जाता है। बड़े-बड़े ड्रम में पानी भरकर रंग सुगन्ध मिलाकर एक दूसरे पर डालकर मनाते हैं।
अफ्रीका - होली के त्यौहार को अफ्रीका में ओगेवा बोगा के नाम  से मनाया जाता है। प्रिन बोगा नाम के जंगली देवता का पुतला जलाकर ख़ुशी मनाते हैं।
चेक गणराज्य -  इस देश में होली से मिलते जुलते त्यौहार को वेलियाकोनसि कहते हैं। भारत की तरह यहाँ भी होली मनायी जाती है।यूरोप में स्थिति चेकोस्लोवाकिया नाम का यह देश इस समय चेक गणराज्य तथा स्लोवाकिया गणराज्य नामक दो भागों में बँट गया है।
स्वीडन - होली से मिलते जुलते त्यौहार को यहाँ सेन्ट जॉन की पावन तिथि के रूप में मनाते हैं। इस दिन शाम के समय पर्वतों पर आग लगाकर पटाखें फोड़ते हैं और रंगों से खेलते हैं।
फ्रांस - यहाँ पर होली का त्यौहार गाचो के नाम से मनाया जाता है। घास का पुतला जलाकर रंग उड़ाते हुए लोग मौज मस्ती करते हैं।  
चीन - इस त्यौहार को चीनी भाषा में चैजे का नाम दिया गया है। लकड़ियाँ जलाने के बाद रंग गुलाल एक दूसरे पर डालते हैं। उसके बाद रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर एक दूसरे को लोग शुभकामनाएं देते हैं। 


पोलैंड - इस देश में आरशिना के नाम से होली का पर्व मनाया जाता है। सामूहिक रूप से फूलों से बनाये गये रंग को सभी पर डाला जता है।
बेल्जियम - यहाँ पर होली पर्व की तरह का उत्सव पुराने जूतों को जलाकर मनाया जाता है। जो इस उत्सव में नहीं शामिल नहीं होते है उनके मुँह को रंगकर एवं गधे पर बैठाकर जुलूस निकलते हैं और खूब हँसी-मजाक किया जाता है।
यूनान - इस देश को ग्रीस भी कहा जाता है यहाँ यूनानी देवता टायनोसियस की पूजा बड़े धूमधाम से किया जाता है। आग जलाकर नाच गाना करते हुए खूब  मौज मस्ती की जाती है

Tuesday 11 March 2014

भोजपुरी सिनेमा का अब तक के 50 साल का सफ़र : भोजपुरीनामा डॉट कॉम भाग - 3

पिछले दो भाग में आपने ज्ञात किया कि  भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत कैसे हुई और कैसे पदार्पण हुआ  भोजपुरी सिने सुपर स्टार का  ... 
अब पढ़िए आगे -





गायक व नायक उदय  (मनोज तिवारी*, *दिनेश लाल यादव निरहुआ, पवन सिंह और खेसारीलाल यादव ) :- 

सन 2005 में "रवि किशन" अभिनीत "पंडितजी बताईं न बियाह कब होई" और "मनोज तिवारी" अभिनीत  *ससुरा बड़ा पईसा वाला*  जहाँ एकदम  कम बज़ट  पर बनी इन दोनों फिल्मों ने अपने लागत से दस गुना कमाई कर सबको चौक दिया,
वहीं  *ससुरा बड़ा पईसा वाला* फ़िल्म के माध्यम से  लोक गायक  *मनोज तिवारी* का स्टार नायक के रूप में उदय हुआ और फिर शुरू हुआ भोजपुरी सिनेमा के सुनहरे दौर का सफ़र। एक से बढ़कर एक सुपर हिट फिल्मों के प्रदर्शन के साथ ही सुधाकर पाण्डेय निर्मित फ़िल्म - *चलत मुसाफिर मोह लियो रे*  आयी  जिससे  लोक गायक दिनेश लाल यादव *निरहुआ* ने  बतौर नायक पदार्पण किया। 
आने वाले 5 सालों में तो दिनेश लाल यादव "निरहुआ" ने हीरो का मायने ही बदल दिया। एक साधारण कद काठी का हीरो अपने एक्टिंग के दम पर भोजपुरी  फिल्मों का  स्टार से सुपर स्टार बन गये। "निरहुआ रिक्शावाला" फ़िल्म से इनकी अलग पहचान लोगो के दिलो दिमाग पर छाती  चली गयी।


भोजपुरी सिने जगत में गायक एवं नायक के रूप में ''पवन सिंह'' का भी खास योगदान रहा है। पवन सिंह के करियर को टॉप पर पहुँचाने वाला गीत "लॉलीपॉप लागेलू" आज भी हिट  है। जिसकी धुन पर  टी वी चैनल का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय रियलटी शो ''बिग बॉस" के अलावा समय -  समय पर कई हिंदी चैनलों पर सितारे थिरकते हुए नज़र आ ही जाते हैं। 

इन सबके अलावा "खेसारी लाल यादव'' ने अपनी गायन प्रतिभा के बल पर तथा सुपर हिट भोजपुरी फ़िल्म - "साजन चले ससुराल" के माध्यम से सुपर स्टार की पदवी हासिल कर लिया है।

 हिन्दी सिनेमा के सितारों का भोजपुरी सिने जगत में आगमन :- 
हिंदी सिनेमा के अभिनेता "विनय आनन्द" तथा ''कृष्णा अभिषेक''  ने भी भोजपुरी सिनेमा को ऊँचाई  प्रदान करने में विशेष योगदान दिया और आज  भी  इनकी फिल्मों और अभिनय के दर्शक दीवाने हैं। 


आलम यह है कि सदी के महानायक "अमिताभ बच्चन" भी  "गंगा", "गंगोत्री" एवं "गंगा देवी" 3 भोजपुरी फिल्मों में काम कर चुके हैं।  

यहाँ तक की आम आदमी के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले "मिथुन चक्रवर्ती" की फिल्म - "भोले शंकर" ने साल 2008 में बॉक्स ऑफिस के नए रिकार्ड कायम  किया .. बॉलीवुड के और भी नामी गिरामी सितारे - हेमा मालिनी, जैकी श्राफ, राज बब्बर, रति अग्निहोत्री, शक्ति कपूर, कृष्णा अभिषेक, भाग्य श्री, जूही चावला, नगमा, इशिता भट्ट ... यहाँ तक की अजय देवगन भी भोजपुरी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं।



विदेशी बालाओं का भी भोजपुरी सिनेमा में पदार्पण :- 
विदेशी बालाएं भी भोजपुरी सिनेमा में अपनी किस्मत आज़मा चुकी हैं।  फिल्म - "फिरंगी दुल्हनियाँ"  में युक्रेन  की मॉडल तान्या ने एक ऐसी रशियन लड़की की भूमिका निभाई जिसे बिहारी बांके से प्यार हो जाता है।  इसी तरह कैम्ब्रिज़ की पढ़ी ब्रिटिश अभिनेत्री जेसिका बाथ ने दो फिल्मों के लिए कॉन्ट्रैक्ट साईन किया है।

भोजपुरी सिनेमा में पुराने तथा नये सितारों का महत्वपूर्ण योगदान :- 
भोजपुरी फिल्मों के कुछ और नामचीन अभिनेता - अभिनेत्रियाँ हैं, जिन्होंने भोजपुरी सिनेमा को अपने अभिनय तथा ग्लैमरस के जादू  से लुभाया है।  रामायण तिवारी, नज़ीर हुसैन, सुजीत कुमार, राकेश पाण्डेय, पद्मा खन्ना, कुमकुम,  गौरी खुराना, बंदिनी मिश्रा, पुष्पा वर्मा, मनोज टाईगर, सुशील सिंह, प्रवेश लाल यादव, यश कुमार मिश्रा, सुनील छैला बिहारी, संजय पाण्डेय, अवधेश मिश्रा, कृष्णा अभिषेक, पंकज केसरी, सुदीप पाण्डेय, मनोज द्विवेदी, बालेश्वर सिंह, शुभम तिवारी, धर्मेश मिश्रा, उदय तिवारी, मनोज पाण्डेय, अरविन्द अकेला "कल्लू", राकेश मिश्रा, तेज़ यादव, रानी चटर्जी, रानी चटर्जी, रिंकू घोष, पाखी हेगड़े, मोनालिसा, अंजना सिंह,  दिव्या देसाई (रश्मि देसाई),  श्वेता तिवारी, संगीता तिवारी,  लवी रोहतगी, गुंजन पन्त, अक्षरा सिंह, स्मृति सिन्हा, अनारा गुप्ता, नेहा श्री सिंह, कृषा खंडेलवाल, शुभी शर्मा, राखी त्रिपाठी, सुप्रेरणा  सिंह, प्रिया पाण्डेय, किरण यादव, संभावना सेठ एवं सीमा सिंह इत्यादि  ऐसे बहुत से सारे स्टार हैं जो आज भी भोजपुरी सिनेजगत के आसमान में चमकते तारों की तरह अपनी रोशनी फैला रहे हैं।

Friday 7 March 2014

भोजपुरी सिनेमा का अब तक के 50 साल का सफ़र : अगला भाग - 2

साठ का दशक  तथा भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत  :-
साठ  के दशक में कहने के लिए  यह सफ़र शुरू तो हो गया लेकिन इसकी राहें  आसान  न थीं, हालांकि साठ  और सत्तर के दशक में  भोजपुरी फिल्में बनती रही लेकिन काफी अंतराल के बाद 1963 में एस. एन.त्रिपाठी निर्देशित ''बिदेसिया''काफी चर्चा में रही। जिसके हीरो थे सुजीत कुमार। इसके  बाद   लागी छूटे नाही राम, गंगा, भउजी  इत्यादि भोजपुरी फिल्में प्रदर्शित हुई।
 
सत्तर के दशक में हिन्दी फ़िल्म अभिनेता राकेश पाण्डेय  अभिनीत फ़िल्म  "बलम परदेसिया" 1977 में प्रदर्शित की गई। इस फ़िल्म से हिमांचल प्रदेश के मूल निवासी राकेश पाण्डेय ने भोजपुरी सिने जगत में भी अपनी पहचान बनाया।

भोजपुरी सिने जगत के पहले सुपर स्टार का उदय (कुणाल सिंह) :-
60 & 70 के दशक में भोजपुरी फिल्मों का निर्माण ज्यादा न होते हुए भी 80 का दशक बसंत ऋतु की तरह था।  सन 1980 में *धरती मईया* फिल्म  का निर्माण हुआ जिसके जरिये भोजपुरी सिनेमा के महानायक *कुणाल सिंह* का आगमन हुआ, इनका  भोजपुरी  सिनेमा में तैतीसवाँ  वर्ष पूरा हो चुका है। 
हिन्दी सिनेमा में भी भोजपुरी फ़िल्म ने स्टार दिया :- ये वह दौर था जब भोजपुरी में इंतनी ज्यादा  फिल्में बननी शुरू हुई कि एक इंडस्ट्री की तरह काम होने लगा। इसका श्रेय जाता है 1982 में हिंदी-भोजपुरी में बनी फिल्म *नदिया के पार*  को .. राजश्री के बैनर तले गोविन्द मुनीस निर्देशित इस फिल्म ने रिकार्ड तोड़ बिजनेस किया।  इसके गानों ने हिंदी भाषी इलाकों और भोजपुरी भाषी प्रान्तों में धूम मचा दी तथा दो कलाकार "सचिन पिलगावकर" और  "साधना सिंह" स्टार बन गये।

भोजपुरी सिनेमा के निर्माण में चढ़ाव तथा उतार  :-
1983 में ही हमार भौजी को बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी मिली। इसे निर्देशित किया था कल्पतरु ने। अस्सी का दशक समाप्त होते होते सन 1989 में राजकुमार शर्मा निर्देशित फिल्म "माई" ने एक बार फिर भोजपुरी  फिल्मों का परचम लहराया। 
लेकिन 1990 का दशक करीब करीब भोजपुरी सिनेमा के लिए एक ताबूत में कील की तरह साबित हुआ। पूरे दस साल भोजपुरी  सिनेमा की हालत यूँ थी मानो ऑक्सीजन पर हो।

भोजपुरी सिनेमा के दूसरे सुपर स्टार का आगमन  (रवि किशन:-
इक्कीसवीं सदी शुरू होते ही सन 2001 में एक भोजपुरी  फिल्म आई जिसने इस इंडस्ट्री में दुबारा प्राण फूँकने का काम किया।  मोहनजी प्रसाद द्वारा निर्देशित इस फिल्म का नाम था - "सईंया हमार",  जिसने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनाई और इसके हीरो थे "रवि किशन" जो भोजपुरी फिल्मों के आने वाले सुपर स्टार हो गये। 
भोजपुरी सिनेमा की कामयाबी का सफ़र :- सन 2005 - 06  एक ऐसा साल था जब भोजपुरी सिनेमा ने डंके के चोट पर अपने वजूद का एलान कर दिया। कामयाबी और बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्मों का ताँता सा लग गया। ये मुमकिन हुआ दो फिल्मों से *पंडितजी बताईं ना बियाह कब होई*  और  *ससुरा बड़ा पईसा वाला* से।  ये भोजपुरी सिनेमा की दो ऐसी फिल्में थीं जिन्होंने बिहार और उत्तर प्रदेश में उस वक्त रिलीज हुयी हिंदी फिल्में *बंटी और बबली* तथा *मंगल पाण्डेय* से ज्यादा व्यवसाय किया। 
अब तो आलम  यह है कि दक्षिण भारत एवं नेपाली फिल्मों को भोजपुरी भाषा में डब करके प्रदर्शित किया जा रहा है और अब ढेर सारी हिंदी की हिट फिल्मों का भोजपुरी में डब करने की योजना बनाई जा रहीं है। 


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Tuesday 4 March 2014

भोजपुरी सिनेमा का अब तक के 50 साल का सफ़र : भोजपुरीनामा डॉट कॉम

{ फ़िल्म निर्माता -  विश्वनाथ शाहाबादी एवं प्रथम राष्ट्रपति - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद }
भोजपुरी सिनेमा का सुनहरा दौर दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है।  हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी ही है। यह भाषा आम बोल चाल में इतनी सरल है कि हिन्दी भाषा जानने और समझने वाला कोई भी व्यक्ति आसानी से समझ लेता है। अगर हम बात करें हिन्दी सिनेमा के निर्माण की तो आज से 50 साल पहले की जितनी हिन्दी फिल्मों का निर्माण हुआ है लगभग सभी फिल्मों का भोजपुरी परिवेश में ही चरित्र-चित्रण किया गया है।
आइये जानते हैं भोजपुरी सिनेमा के अब तक के 50 साल के सफ़र बारे में :

{ पहली भोजपुरी फ़िल्म - गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो }

भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत :- जहाँ  हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे हुए हैं, वहीँ भोजपुरी सिनेमा ने भी अपने 50 साल के सफ़र को पार कर अपनी राह पर तेज़ कदमों से आगे बढ़ रहा है।  भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत यूँ तो सन 1960 में हुईं जब भारत के पहले राष्ट्रपति डा० राजेंद्र प्रसाद, जो कि  बिहार में जन्में और पले बढ़े थे। उन्होंने फ़िल्म निर्माता  विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी से मुलाकात कर भोजपुरी फिल्म बनाने की प्रेरणा दी और तीन साल बाद 1963 में, यानि आज से 50 साल पहले भोजपुरी की पहली फिल्म बनकर प्रदर्शित हुई  जिसका नाम था *गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ाइबो* जिसे विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी के बैनर निर्मल पिक्चर्स के बैनर तले कुन्दन कुमार के निर्देशन में बनाया गया था। 


{ अभिनेता -  नासिर हुसैन एवं प्रथम राष्ट्रपति - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद }
भारत देश के अलावा विदेश में भी भोजपुरी भाषा का विस्तार :- आज भोजपुरी फिल्में भोजपुरी जुबान बोलने वाली जनसंख्या में बेहद लोकप्रिय हैं, जो कि  पश्चिम बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, तराई का इलाका और दक्षिण नेपाल तक फैली हुई है। न सिर्फ पूरे भारत में बल्कि दुनियां के कई देशों में भी भोजपुरी  फिल्में देखी जाती है। मारीशस, नीदरलैंड, ब्राज़ील, फ़िजी, गुआयना , दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, सूरीनाम, त्रिनिनाद, सिडनी तथा टोबैको सहित लगभग 25 से भी ज्यादा देश हैं जहां भोजपुरी भाषी लोग बसे हैं ज्यादातर भोजपुरी भाषा बतौर मातृभाषा बोली जाती है। हिंदी के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी भाषा है जिसे देश  और  विदेश में लगभग 35 करोड़ लोग बोलते हैं। भोजपुरी फिल्मों का व्यवसायीकरण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हो चुका है। मारीशस सरकार द्वारा महानायक का ख़िताब पा चुके रवि किशन अभिनीत भोजपुरी  फिल्म- *जरा देब दुनिया तोहरे प्यार में* का कांस फिल्म फेस्टिवल में सम्मानित होना गर्व की बात है। यह पहली भोजपुरी फिल्म है जिसने कान्स में अपनी मौजूदगी दर्ज करायी।................

पहला भाग  समाप्त : दूसरा भाग आप पढ़िये शुक्रवार को शाम के समय। 

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