Friday 24 April 2015

वीर योद्धा वीर कुंवर सिंह: 80 साल की उम्र में सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक

अस्सी साल की आयु शारीरिक रूप से लोगों को कमजोर बना देती है. इस  उम्र में लोग सारी मोहा माया का त्याग कर विरक्त जीवन यापन करना चाहते हैं. मगर इन सभी अपवादों को दर किनार कर 80 साल के अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक बने.  नव युवा जितना जोश और फुर्ती  के बलबूते इनको 80 वर्ष की उम्र में भी  अग्रेजी हुकूमत से लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है. 
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की एक झलक देखिये इस लिंक को ओपन करके - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/4DGdryYmuXM/India-s-First-War-of-Independence-1857

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के हीरो रहे जगदीशपुर के बाबू वीर कुंवर सिंह को एक  बेजोड़ व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है. अपने ढलते उम्र और बिगड़ते सेहत के बावजूद भी उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर सामना किया.
यह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह दौर था जब इस संग्राम के प्रथम नायक बने मंगल पाण्डेय ने वर्ष 1857 में विद्रोह का बिगुल बजाया था. उसी समय जहां एक तरफ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ झांसी, कालपी और ग्वालियर में अपना अभियान छेड़ रखा था तो वहीं दूसरी तरफ  गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के अग्रणी  योद्धा तात्या टोपे और नाना साहेब ग्वालियर, इंदौर, महू, नीमच, मंदसौर, जबलपुर, सागर, दमोह, भोपाल, सीहोर और विंध्य के क्षेत्रों में घूम-घूमकर विद्रोह का अलख जगाने में लगे हुए थे. वहीं पर एक और रणबांकुरा था जिसकी वीरगाथा आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है. 

स्वतंत्रता के संघर्ष की गाथा देखिये इस लिंक को ओपन करके - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/C3aVJKqhQPQ/freedom-struggle-of-India-1857-1947-part-1


जीवन परिचय : बिहार के शाहाबाद (भोजपुर) जिले के जगदीशपुर गांव में जन्मे कुंवर सिंह का जन्म 23 अप्रैल 1777 में प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में हुआ. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा हमेशा अंग्रेजों के के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ते रहे. 
बाबू कुंवर सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह जिला शाहाबाद की कीमती और अतिविशाल जागीरों के मालिक थे. सहृदय और लोकप्रिय कुंवर सिंह को उनके बटाईदार बहुत चाहते थे. वह अपने गांववासियों में लोकप्रिय थे ही साथ ही अंग्रेजी हुकूमत में भी उनकी अच्छी पैठ थी. कई ब्रिटिश अधिकारी उनके मित्र रह चुके थे लेकिन इस दोस्ती के कारण वह अंग्रेजनिष्ठ नहीं बने. 

भारत माता के अमर सपूत की पहला स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/2YuY0B5ArRc/Indian-struggle-for-freedom-1857-1947-part-1

1857 के संग्राम में बाबू कुंवर सिंह : 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबू कुंवर सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया. मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया. उन्होंने 27 अप्रैल, 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ मिलकर आरा नगर पर कब्जा कर लिया. इस तरह कुंवर सिंह का अभियान आरा में जेल तोड़ कर कैदियों की मुक्ति तथा खजाने पर कब्जे से प्रारंभ हुआ.

भारत एक खोज धारावाहिक भाग - 42 के इस लिंक में देखिये 1857 की क्रांति -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/6kLZLb5-N0s/Bharat-Ek-Khoj-Episode-42-1857-Part-1

कुंवर सिंह ने दूसरा मोर्चा बीबीगंज में खोला जहां दो अगस्त, 1857 को अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. अंग्रजों ने जगदीशपुर पर भयंकर गोलाबारी की. घायलों को भी फांसी पर लटका दिया. महल और दुर्ग खंडहर कर दिए. कुंवर सिंह पराजित भले हुए हों लेकिन अंग्रेजों का खत्म करने का उनका जज्बा ज्यों का त्यों था. सितंबर 1857 में वे रीवा की ओर निकल गए वहां उनकी मुलाकत नाना साहब से हुई और वे एक और जंग करने के लिए बांदा से कालपी पहुंचे लेकिन सर कॉलिन के हाथों तात्या की हार के बाद कुंवर सिंह कालपी नहीं गए और लखनऊ आए.
इस बीच बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे. लेकिन कुंवर सिंह की यह विजयी गाथा ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी और अंग्रेजों ने लखनऊ पर पुन: कब्जा करने के बाद आजमगढ़ पर भी कब्जा कर लिया. इस बीच कुंवर सिंह बिहार की ओर लौटने लगे. जब वे जगदीशपुर जाने के लिए गंगा पार कर रहे थे तभी उनकी बांह में एक अंग्रेजों की गोली आकर लगी. उन्होंने अपनी तलवार से कलाई काटकर नदी में प्रवाहित कर दी. इस तरह से अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर पहुंचे. वह बुरी तरह से घायल थे. 1857 की क्रान्ति के इस महान नायक का आखिरकार अदम्य वीरता का प्रदर्शन करते हुए 26 अप्रैल, 1858 को निधन हो गया. हमारे देश के ऐसे वीर योद्धा एवं प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी को हम सत सत नमन करते हैं. 

सन 1857 प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीडियो देखने के लिए लॉगिन करें -
www.bhojpurinama.com


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