Friday 31 October 2014

31 अक्टूबर : सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती और इन्दिरा गांधी की पुण्यतिथि

सरदार वल्लभ भाई पटेल  की जयंती : भारत  के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1975 में तथा मृत्यु 15 दिसंबर 1950में हुआ था। सरदार पटेल नवीन भारत के निर्माता थे। राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। इतना ही नहीं वे वास्तव में भारतीय जनमानस एवं  किसान की आत्मा थे। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान है। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री बने। उन्हे भारत का 'लौह पुरूष' भी कहा जाता है।
जीवन परिचय : पटेल का जन्म नडियादगुजरात में एक पाटीदार कृषक ज़मीदार परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लदबा की चौथी संतान थे। सोमभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया।
सरदार पटेल 1920 के दशक में गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन के समय कांग्रेस में भर्ती हुए। 1937 तक उन्हे दो बार कांग्रेस के सभापति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वे पार्टी के अन्दर और जनता में बहुत लोकप्रिय थे। कांग्रेस के अन्दर उन्हे जवाहरलाल नेहरू का प्रतिद्वन्दी माना जाता था।
आज़ादी  के बाद : यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।
गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन 1950 में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।
इन्दिरा गांधी की पुण्यतिथि : इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर १९१७-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।
इन्दिरा का जन्म 19 नवम्बर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं।
इन्दिरा को उनका "गांधी" उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के पश्चात मिला था। इनका मोहनदास करमचंद गाँधी से न तो खून का और न ही शादी के द्वारा कोई रिश्ता था। इनके पितामह मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे।
1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे विफल रहीं और ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद इन्होने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इस समय के दौरान इनकी अक्सर फिरोज़ गाँधी से मुलाकात होती थी, जिन्हे यहइलाहाबाद से जानती थीं और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। अंततः 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्म ब्रह्म-वैदिक समारोह में इनका विवाह फिरोज़ से हुआ।
ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं।
1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।
श्री लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिती में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं कॉंग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमे आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई।

भोजपुरी से जुडी हुई कोई भी वीडियो देखने के लिए लॉगिन करें -
www.bhojpurinama.com
साभार : विकिपीडिया 

Tuesday 28 October 2014

छठ पूजा महापर्व : डूबते व उगते सूर्य की पूजा-अर्चना

छठ पूजा महापर्व : जैसा कि आप सब जानते हैं कि भारत वर्ष में हर त्यौहार  धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक मास में छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। छठ पूजा महापर्व में सूर्योपासना का अनुपम लोकपर्व माना जाता है। यह एक ऐसा महापर्व है जिसमें डूबते हुए तथा उगते हुए सूर्य की पूजा आराधना की जाती है। छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,  झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी भी मनाते देखे गए हैं।  धीरे धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है।

छठ पूजा पर डूबते हुए सूर्य की  पूजा-अर्चना करते देखिये इस  लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/video/chat-puja-part-3
मनोकामना पूर्ण करती हैं छठ मईया :
इस साल छठ पूजा की शुरुआत *सोमवार* ( 27/10/2014) से "नहाय खाय" के साथ हो गयी है। व्रतियों ने सोमवार को अरवा चावल, लौकी व चने की दाल सहित केले की सब्जी खाकर व्रत शुरू किया। इस व्रत को महिला व पुरुष दोनों करते हैं। *मंगलवार* को पावन छठ पर्व का "खरना" रात में किया जाएगा। खरना के दिन व्रती शाम को भगवान सूर्य व चांद को ध्यान कर पूजा अर्चना करते हैं तथा प्रसाद खाकर अगले दिन *बुधवार* को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करेंगे और  *गुरुवार* को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करेंगे तथा प्रसाद वितरण करके व्रत का समापन करेंगे। इन दो दिनों तक निर्जला उपवास किया जाता है। 

छठ  मईया की  पूजा-अर्चना करते देखिये इस  लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/video/chat-puja-part-4

महिलाएं पानी में खड़ी होकर डूबते व उगते सूर्य की पूजा-अर्चना करती हैं। पूजा के वक्त हाथ में बांस से बने सूप व टोकरी में फल व कंद सहित पकवान के साथ पूजा की जाती है। उगते सूर्य की पूजा के उपरांत छठ पर्व का समापन होता है।  छठ पूजा का इतिहास महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की पूजा किए जाने का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जल की महत्ता को साक्षी मानकर सूर्य की पूजा की जाती है।
छठ मईया के गीत देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/6ma9WFpEVvw/Karab-Hum-Amma-Ji-Bhojpuri-Chhath-Geet-Smita-Singh-Full-Video-Song-I-Chhathi-Maai-Hoihein-Sahay

छठ पूजा के कड़े नियम :
छठ पर्व पर दूसरे दिन यानि खरना पर पूरे दिन का व्रत रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की बखीर (कुछ जगह लोग गुड़ से खीर बनाते हैं वह भी बखीर ही मानी जाती है) बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा( मिट्टी के बर्तन) में बखीर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में प्रसाद के रूप में बखीर का ही भोजन किया जाता है तथा सगे संबंधियों में इसे बांटा जाता है। इस दिन का प्रसाद यानि खीर और रोटी बेहद स्वादिष्ट और सेहतमंद होता है। 
शाम के अर्घ्य के दिन दोपहर बाद से ही बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और नौजवान नए वस्त्रों में सुशोभित होकर घाट की ओर प्रस्थान करते हैं। घर के पुरुष सिर पर चढ़ावे वाला दऊरा लेकर आगे-आगे चलते हैं, पीछे-पीछे महिलाएं गीत गाती व्रत स्थल को जाती हैं। वहां पहुंचकर पहले गीली मिट्टी से सिरोपता बनाती हैं। अक्षत-सिंदूर, चंदन, फूल चढ़ाकर वहां एक अर्घ्य रखकर छठी मईया की सांध्य पूजा का शुभारम्भ करती हैं। व्रती नदी में पश्चिम की और मुंह करके खड़े होते हैं और भगवान दिवाकर की आराधना करते हैं। 
भोर-सुबह में छठ मईया की पूजा देखिये इस लिंक इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/video/chat-puja-part-1

वैसे तो लोग इस दिन घाट पर अपनी मर्जी और सामर्थ्य से फल ले जाते हैं लेकिन विधिवत रूप से एक सूप में कपड़े में लिपटा हुआ नारियल,  पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ही काफी होता है। शाम को पूजा करने के बाद घर वापस आया जाता है और अगली सुबह की तैयारी की जाती है। अगले दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचा जाता है और भगवान सूर्य के निकलते ही उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य भगवान से अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। इसके बाद वहीं पर प्रसाद ग्रहण कर व्रत को तोड़ा जाता है और भगवान सूर्य को यह व्रत रखने की क्षमता प्रदान करने के लिए धन्यवाद दिया जाता है। 



Friday 24 October 2014

भाई दूज : भाई बहन के प्रेम का त्यौहार

दीपावली के दूसरे दिन  कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला ''भाई दूज'' त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और स्नेह के प्रतीक है। इस त्यौहार को यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन बहनें रोली और अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं वहीं भाई अपनी बहन को बदले में उपहार देता है। 




भाई दूज की कथा जानिए इस लिंक को ओपन करके -

पौराणिक कथा के अनुसार छाया भगवान सूर्यदेव की पत्नी हैं जिनकी दो संतान हुई यमराज तथा यमुना।  यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी।  वह उनसे सदा यह निवेदन करती थी वे उनके घर आकर भोजन करें।  लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया तो यमराज मना न कर सके और बहन के घर चल पड़े। रास्ते में यमराज ने नरक में रहनेवाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई को देखते ही यमुना ने बहुत हर्षित हुई और भाई का स्वागत सत्कार किया।

भाई दूज की पूजा विधि का वीडियो  देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/usKzJX-Nxck/Bhai-Dooj-Puja-Vidhi---Puja-Process


इस त्यौहार को महाराष्ट्र में भाव-भीज और बंगाल में भाई-फोटा के रूप में मनाया जाता है। हालांकिचैत्र माह में होली के बाद भी भाई दूज मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यम देवता ने अपनी बहन यमी (यमुना) को इसी दिन दर्शन दिए थे। घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने उनकी आवभगत की थी तब यम ने खुश होकर बहन को वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। यमुना के प्रेम भरा भोजन ग्रहण करने के बाद प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से कुछ मांगने को कहा। यमुना ने उनसे मांगा कि- आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आएंगे और इस दिन जो भाई अपनी बहन से मिलेगा और बहन अपने भाई को टीका करके भोजन कराएगी उसे आपका डर न रहे।

Tuesday 21 October 2014

दीपों का त्यौहार : दीपावली


दीपावली : भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से है ''दिवाली'' दीपों का त्यौहार। यह त्यौहार भारत के अलावा विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व  उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है।

दीपावली का वीडियो देखने के लिए  लिंक को क्लिक कीजिये - 


धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व  : रामायण काल में अयोध्या के राजा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र जब लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या वापस आये थे। उनके लौटने की  खुशी मे पूरा नगर दीपों को जलाकर सजाया गया और दीपावली का त्यौहार मनाया गया था। तब से आज तक सभी लोग यह पर्व मनाते है। श्री कृष्ण काल में दीपावली के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था और इसी दिन समुद्रमंथन के समय  लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं। इसलिए यह दीपाली  त्यौहार का धार्मिक महत्त्व बहुत ही गहरा है। 



हर्षोल्लाश  के साथ दीपावली  मानते हुए देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/OK-5GiGhhKU/Diwali-Festival-of-lights

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।  सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर  में सन 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।  इसके अलावा सन 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से 52 छोटे छोटे राज्यों के राजाओं रिहा करवाये थे। इस दिन  "बन्दी छोड़ दिवस" भी कहा जाता है। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ  का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली।

 शुभ दिवाली आ गयी भजन देखिये इस लिंक में भजन सम्राट अनूप जलोटा की आवाज़ में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/1_xjZ_d2mzs/HAPPY-DIWALI2012--SHUBH-DIWALI-AA-GAYI---Anup-jalota

महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्यौहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। 


http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/2Xs2ze9OIek/Top-5-Bollywood-Diwali-Songs-Shubh-Deepawali-Diwali-Special

Friday 17 October 2014

वैभव का त्यौहार धनतेरस का महत्त्व : यमराज की पूजा !



धनतेरस का महत्त्व : हिन्दी महीना में  कार्तिक मास का बहुत ही महत्त्व है। इस माह में कई हिन्दू पर्व करवा चौथ, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज एवं छठपूजा आदि मनाने के  साथ ही साथ शुभ कार्य का शुभारम्भ हो जाता  है। इसी कार्तिक मास के त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस पूजा  की जाती है। 
 समुन्द्र मंथन के समय आयुर्वेद के जनक भगवान धनवन्तरि अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी भी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी  देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए  स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए क्योंकि मनुष्य सच्चा धन उसका स्वास्थ होता है।  यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजाकर पूजा की जाती  है। 
धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था।  इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। लोगों का यह मानना  है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं ताकि पूरे वर्ष तक बरक्कत होती रहे ।
हिन्दू समाज मे धनतेरस सुख-समृद्धि, यश और वैभव का पर्व माना जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर और आयूर्वेद के देव धन्वन्तरी की पूजा का बड़ा महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला यह महापर्व को इस साल 2014 में 21 अक्टूबर को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाएगा। 


धनतेरस  पूजा  विधि देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/gaJPXrrwnSU/Dhanteras-Puja-Vidhi---How-to-do-Dhanteras-Puja-on-Diwali-Festival-for-Good-Health%252C-Wealth

 नयी वस्तुओं को खरीदने की परम्परा : धनतेरस के दिन नयी वस्तुओं  खरीदना शुभ माना जाता है। समुन्द्र मंथन में जब धन्वन्तरी जी प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत का कलश था, इसलिए इस दिन बर्तन खरीदना अति शुभ होता है। पीतल के बर्तन खरीदना  विशेषकर शुभ माना जाता है। इस दिन घरों को साफ़-सफाई, लीप-पोत कर स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है और फिर शाम के समय रंगोली बना दीपक जलाकर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है।

लक्ष्मी पूजा की विधि देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/4uvHaEjPwdA/vaibhav-lakshmi-vratha-pooja-by-KANAPARTHI-PADMA

धनतेरस के दिन यमराज की पूजा : प्राचीन काल में धनतेरस के ही दिन  यमराज से राजा हिम के पुत्र के प्राण की रक्षा उसकी पत्नी ने किया था। यमराज को जीवन दान देना पड़ा था। इसी वजह से दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले ऐश्वर्य का त्यौहार धनतेरस पर सांयकाल को यमदेव के निमित्त दीपदान किया जाता है। इस दिन को यमदीप दान भी कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है और अकाल मृत्यु  छुटकारा मिलती है।


अधिक से अधिक वीडियो देखने के लिए लॉगिन कीजिये - 

Friday 10 October 2014

करवा चौथ का व्रत और महत्व

करवा चौथ का व्रत :- हिन्दू धर्म में साल के बारह महीने तक हर दिन - हर रात को धर्म कर्म से जोड़ा गया है। यहां तक कि मनुष्य का जीवन  जन्म से मृत्यु तक  कोई ना कोई रीति - रिवाज़ एवं धर्म - कर्म से  जुड़ा हुआ है। इसी कड़ी में  कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष में दीपावली त्यौहार के 11 दिन पहले तथा शरद पूर्णिमा के चौथे दिन चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है।  यह पर्व  भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में विवाहित महिलाओं द्वारा करवा (मिटटी का बना हुआ बर्तन) की पूजा करके चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य  देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

पूजा की विधि :- व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल्लर करवा चौथ के व्रत की शुरुआत किया जाता है । 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
पूरे दिन निर्जला रहकर यह व्रत किया जाता है। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावल के घोल से करवा को चित्रित किया जाता है।  इसे वर कहते हैं। आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, पक्के पकवान बनाया जाता है।  पीली मिट्टी से माँ गौरी की मूर्ती बनाकर उनकी गोद  में गणेशजी को बिठाया जाता है। माँ गौरी को चुनरी, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है। जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है। गौरी - गणेश जी की श्रद्धा अनुसार पूजा की जाती है। पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुननें के करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें करवा भेंट करते हैं। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं इसके बाद पति से आशीर्वाद पाकर व्रत पूर्ण होता है।

करवा चौथ का महत्व :-  करवा चौथ पर्व का महत्व पौराणिक महाभारत काव्य  में भी वर्णन किया गया है। वनवास काल के दौरान अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि पर्वत पर चले जाते हैं और दूसरी ओर पांडवों पर कई संकट आने वाले हैं जानकर द्रोपदी चिंता में पड़ गयी। श्रीकृष्ण द्रोपदी बताते है कि यदि वह कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का करने से उसके पांडव पति को संकट से मुक्ति मिल जाएगी। तब से यह व्रत मनाया जाता है। 
 इस पर्व को मनाने के पीछे महिलाओं के पति प्रेम, पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ-साथ भारतीय नारियों के त्यागमय जीवन के दर्शन होते हैं।
 इस पर्व में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला श्रृंगार वास्तव में प्रकृति का श्रृंगार है। प्रकृति और पुरुष के रूप में पत्नी और पति के शुभ संकल्पों की उदार भावना का यह पर्व वेद की इस ऋचा का अनुपालन है।

भोजपुरी  से जुड़े वीडियो देखने के लिए लॉगिन कीजिये - 

Tuesday 7 October 2014

''निरहुआ हिंदुस्तानी'' ने दोहराया 10 साल पुराना इतिहास

इस साल सन 2014 में जोर शोर से प्रदर्शित गायक से नायक बने  सुपर स्टार *दिनेश लाल यादव 'निरहुआ'* की बतौर नायक 50वीं भोजपुरी फिल्म - ''निरहुआ हिन्दुस्तानी'' ने सफलता का झण्डा गाड़कर बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त मुनाफा कमाया है। इस  फिल्म ने पिछले दस पुराना इतिहास फिर से दोहरा दिया है। 

देखिये ''निरहुआ हिन्दुस्तानी'' फिल्म का ट्रेलर इस लिंक में -http://www.bhojpurinama.com/video/upcoming-bhojpuri-movie-nirahuaa-hindustani-nirahuaa-s-golden-jubli-film

भोजपुरी सिनेमा का 10  साल पहले  का सफर  (सन 2004 से 2014 तक) : 

भोजपुरी सिनेमा के तीसरे दौर की शुरुआत सन 2001 - 2002 में भोजपुरी सिने जगत के दूसरे सुपर स्टार 'रवि किशन' की पहली भोजपुरी फिल्म - ''सईयाँ हमार'' से हुई। बतौर नायक रवि किशन ने सन 2004 - 2005 तक एक छत्र राज किया।  यह सिलसिला निर्माता - निर्देशक मोहनजी प्रसाद ने शुरू किया था जो सन 2004 - 2005 में ब्लॉक बस्टर फिल्म - ''पंडित जी बताईं ना बिआह कब होई'' तक लगातार जारी रहा।



इसी सन में एक और ब्लॉक बस्टर फिल्म - ''ससुरा बड़ा पईसा वाला'' आई,  जिसके नायक थे भोजपुरी सिनेमा के मेगास्टार कहे जाने वाले सिनेस्टार - *मनोज तिवारी 'मृदुल'*। सुधाकर पाण्डेय द्वारा निर्मित तथा अजय सिन्हा द्वारा निर्देशित इस  फिल्म की सफलता ने गायक से नायक बने "मनोज तिवारी" को रातों रात मेगास्टार बना दिया।
 दोनों भोजपुरी फिल्म  - ''ससुरा बड़ा पईसा वाला'' और ''पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई'' ने जबरदस्त सफलता हासिल करके अन्य क्षेत्रीय भाषीय फिल्म निर्माताओं का ध्यान खींचने में कामयाबी हासिल की।



गौरतलब है कि भोजपुरी सिनेमा के  सुपर स्टार ''कुणाल सिंह यादव'' हैं जिन्होंने (दो दशक) 20 साल (1980 और 1990 के दशक) तक सिनेप्रेमियों के नयन सितारा बनकर पहले सुपर स्टार का तमगा हासिल किया है। इनकी पहली भोजपुरी फिल्म - ''धरती मईया'' थी। 


अब 10 साल बाद गायक से नायक बने  सुपर स्टार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' की बतौर नायक 50वीं फिल्म - निरहुआ हिंदुस्तानी ने सफलता का जबरदस्त झण्डा गाड़ते हुए 10 पुराना इतिहास दोहरा दिया है।  यह फिल्म जहां भी प्रदर्शित की  जा रही है सभी सिनेमाघरों में दर्शकों की भारी भीड़ इस फिल्म को देख रही है।
 आदिशक्ति इंटरटेनमेंटस्, निरहुआ इंटरटेनमेंट प्रा०लि० व राहुल खान प्रोडक्शन्स् की इस फिल्म में दिनेशलाल यादव ‘‘निरहुआ’’, आम्रपाली, गोपाल राय, किरण यादव, अयाज़ खान  व संजय पाण्डेय की प्रमुख भूमिका है। निर्माता प्रवेशलाल यादव व राहुल खान की इस फिल्म की अपार सफलता से उत्साहित निरहुआ कहते हैं कि ‘‘निरहुआ हिन्दुस्तानी’’ ने यह साबित कर दिया की अगर अच्छी फिल्म बने तो उसे बड़ी सफलता जरूर मिलती है।


नोट : आज  के ब्लॉग में हमने संक्षिप्त लेख लिखा है।  आप सभी से अनुरोध है कि इस लेख में कोई त्रुटि हो तो उसे बताएं  तथा कोई सुझाव देना हो तो कृपया हमारा सहयोग करें। 

भोजपुरी सिनेमा से जुड़े वीडियो देखने के लिए लॉगिन कीजिये - 
http://www.bhojpurinama.com 





Saturday 4 October 2014

बुराई पर अच्छाई की जीत है : विजय दशमी

जीवन में हम सभी को सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है हिन्दू महापर्व विजय दशमी, जिसे हम दशहरा के नाम से भी मनाते हैं। बुराई कितनी भी बलवान क्यूँ ना हो मगर उसे नतमस्तक होना ही पड़ता है। बुराई का प्रतीक रावण को इस पावन पर्व पर नाच, ढोल, नगाड़े के साथ अच्छाई  प्रतीक राम द्वारा जलाया जाता है ताकि जन जन में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का  वास हो सके।
दशहरा पर्व पूरे भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में मनाया जाता है। हमारा देश भारतवर्ष विश्व गुरु रह चुका है। पूरे विश्व में सबसे धनी देश के रूप में जाना जाता था इसीलिए हमारा देश भारत सोने की चिड़िया कहलाया करता था। प्राचीन काल में भारत देश को आर्याव्रत के नाम से जाना जाता था तदोपरान्त परम सुरवीर चक्रवर्ती राजा दुष्यंत पुत्र महाराजा भरत के नाम से भारत वर्ष नाम पड़ा। भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म जिसे सनातन धर्म भी कहा जाता है को आज भी विश्व स्तर पर पावन और पवित्र माना जाता है और इस वजह से हमारे देश के प्रमुख त्यौहारों को पूरे विश्व पूरी श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है। यही कारण है कि सम्पूर्ण विश्व में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। कुल्लू और मैसूर का दशहरा विश्वविख्यात है। जिसमे विदेशी नागरिक भी शामिल होते हैं।
दशहरा यानि विजय दशमी के दिन ही पुरुषोत्तम राम  महाबली रावण का वध करके बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की थी। महाशक्तिमान कहे जाने वाला रावण प्रारम्भ मेंअतिसामान्य आदमी था। जिसकी झलक रामचरित मानस में मिलती हैं। 

अंगद - रावण संवाद में रावण के राजसभा में अंगद रावण के इतिहास के बारे में ललकार कर कहते हैं कि जितने रावणों को मैं जानता हूँ,  तू सुन और बता कि उनमें से तू कौन सा रावण है। 
अंगद की वाणी तुलसीदास जी रचित रामचरित मानस की चौपाई में देखिये - 


''बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला।।
एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा।।''

''एक कहत मोहि सकुच अति, रहा बालि की काँख।
 इन्ह माह रावन तैं कवन, सत्य बदहि तजि माखि।।"

ये सब वही रावण दस सिर वाले दशानन थे। जिसके पास शक्ति आ जाने से कितना भयानक हो गया था। राम - रावण कथा में दो साधारण मनुष्यों की कहानी है जिसमे शक्तियाँ दोनों के पास हैं मगर एक पास सत्य की शक्ति है और दूसरे के पास अहंकार की शक्ति है। सत्य की शक्ति के बलबूते  निर्वासित राजपुरुष ने बंदरों, भालुओं को इकट्ठा करके उस महाशक्तिमान अहंकार की शक्ति को हरा दिया। 

दशहरा-विजयदशमी के भजन व गीत देखने व सुनने के लिए लॉगिन कीजिये -
http://www.bhojpurinama.com

सभी देशवासियों को दशहरा (विजयादशमी) की हार्दिक शुभकामना।।