Friday 27 February 2015

हजारों वर्ष पुरानी भोजपुरी भाषा में भोजपुरी साहित्य का स्थान

हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा ३५ करोड़ लोगों के बीच बोली जाने वाली भोजपुरी बोली पूरे भारत विभिन्न राज्यों के अलावा विदेश में भी बोली जाती है. भोजपुरी बोली की एक पहचान भोजपुरी सिनेमा से भी है. 


लोकगीत  तालुकदार यादव पहलवान का  बिरहा देखिये इस लिंक में -

भोजपुरी लोकगीत का भी अपना अलग महत्त्व है. जहां तक भोजपुरी साहित्य और काव्य की बात है तो यह विधा भी अपना अलग स्थान बनाये हुए है. बहुत से कवि और साहित्यकार ने मधुर शब्दों रचना करके भोजपुरी गरिमा बढाई है. देखा जाय तो भोजपुरी का इतिहास हजारों साल पुराना है. चौरासी सिद्धों की कविता में भोजपुरी की क्रिया का रूप मिलता है. 

भोजपुरी लोकगायक व अभिनेता पवन सिंह  स्टेज शो देखिये - 

बाबा गोरखनाथ की कई कविता का वर्णन मिलता है उसके बाद कबीर दास की बानी  में विशाल रूप मिलता है. १९वीं सदी में भोजपुरी में लिखने वाले निर्गुण संतों की बहुत लम्बी परम्परा है. धरमदास, कमालदास, पलटू साहेब, लक्ष्मी सखी, दरिया साहेब, शिव नारायण, गुलाल साहेब आदि संतों में भोजपुरी की अविरल धारा बह रही है.

भोजपुरी का लोकप्रिय विधा बिदेसिया का यह लोकप्रिय गीत देखिये नीचे दिए हुए लिंक में - 

उन्नीसवीं सदी के अंत से अब तक कई कवियों और रचनाकारों ने महाकाव्य से लेकर उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध सहित कई साहित्य की रचना की है. भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के लोकगायन और विभिन्न समसामायिक घटनाओं पर नाटकों का भोजपुरी में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है. महेंद्र मिसिर और राहुल सांकृत्यायन से लेकर गोरख पाण्डेय और प्रकाश उदय ने प्रसिद्ध रचना की है. राम नरेश त्रिपाठी, हीरालाल तिवारी और कृष्णदेव उपाध्याय आदि लोक साहित्यकार की रचना भंडार अलग ही है. भोजपुरी सिनेमा में भी मशहूर रचनाकारों की रचना का बहुत ही लुभावन प्रयोग दर्शाया गया है. 

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Tuesday 17 February 2015

महाशिवरात्रि का महत्त्व : शिवरात्रि की पावन व्रत कथा

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार  है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।
कथापौराणिक : महाशिवरात्रि से संबधित कई पौराणिक कथायें है।
विधान :
इस दिन शिवभक्त, शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाते, पूजन करते, उपवास करते तथा रात्रि को जागरण करते हैं। शिवलिंग पर बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।

इस दिन शिव की शादी हुई थी इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है।


शिव भजन सुनिए इस लिंक में

विधि : इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंगपर चढ़ाया जाता है। अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है।
रात्रि को जागरण करके शिवपुराण का पाठ सुनना हरेक व्रती का धर्म माना गया है।
अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इसके करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपज जाता है। 
ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार किया गया है :-
 
॥शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्। आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
विशेष :
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया हैं। शिव का अर्थ है कल्याण। शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।


शिव भोले का भजन सुनिए इस लिंक में –


अनुष्ठान : 
कारोबार वृद्धि के लिए :
महाशिवरात्रि के सिद्ध मुहर्त में पारद शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित करवाकर स्थापित करने से व्यवसाय में वृद्धि व नौकरी में तरक्की मिलती है।
बाधा नाश के लिए:
शिवरात्रि के प्रदोष काल में स्फटिक शिवलिंग को शुद्ध गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद व शक्कर से स्नान करवाकर धूप-दीप जलाकर निम्न मंत्र का जाप करने से समस्त बाधाओं का शमन होता है। ॥ॐ तुत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात्॥
बीमारी से छुटकारे के लिए :
शिव मंदिर में लिंग पूजन कर दस हज़ार मंत्रों का जाप करने से प्राण रक्षा होती है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला पर करें।
शत्रु नाश के लिए :
शिवरात्रि को रूद्राष्टक का पाठ यथासंभव करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। मुक़दमे में जीत व समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
मोक्ष के लिए :
शिवरात्रि को एक मुखी रूद्राक्ष को गंगाजल से स्नान करवाकर धूप-दीप दिखा कर तख्ते पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। शिव रूप रूद्राक्ष के सामने बैठ कर सवा लाख मंत्र जप का संकल्प लेकर जाप आरंभ करें। जप शिवरात्रि के बाद भी जारी रखें। 
ॐ नम: शिवाय।
रुद्राभिशेक से लाभ् यदि वर्शा चाह्ते है तो जल से रुद्राभिशेक करे व्यधि नाश के लिये कुशा से करे यदि पशुओ कि कामना चाह्ते है तो दहि से रुद्रभिशेक करे श्रिः कि कामना चाह्ते है तो गन्ना के रस से रुद्रभिशेक करे। 


भोलेबाबा का भजन माला देखिये इस लिंक में –



शिकारी कथा :
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक गांव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकार को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।
शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़फ रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'

भोलेदानी शिवशम्भू का  भजन सुनिए इस लिंक में –



अभिषेक :
भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक : जल से और दुग्‍धाभिषेक : दूध से आयोजन अनुष्‍ठान मेला
महाशिवरात्रि के अवसर पर काठमाडौं के पशुपतिनाथ के मन्दिर पर भक्तजन का भीड लगता है। इस अवसर पर भारत लगायत विश्व के विभिन्न स्थानौं से जोगी, योजी एवम्‌ भक्तजन इस मन्दिर पर आते है।
ज्‍योर्तिलिंग :
बारह स्‍थानों पर बारह ज्‍योर्तिलिंग स्‍थापित हैं। जानिए शिव के 12 ज्योतिर्लिंग
1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थातिप है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
4. ओंकारेश्वर ममलेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
7. भीमशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
8. त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
9. घुमेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।
10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
11. विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
12. रामेश्वरम्‌ त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।

Friday 13 February 2015

14 फरवरी : महज एक तारीख या कोई दिन नहीं बल्कि एक विशेष अहसास है

14 फरवरी : महज एक तारीख या कोई दिन नहीं बल्कि एक विशेष अहसास है जो हर युवा के दिलों में स्पंदन की गति को बढ़ा देता है। 14 फरवरी आज-कल वैलेंटाइन डे के रूप में न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में मनाया जाता है। भारतीय युवाओं में भी इस दिन का विशेष क्रेज देखा-जाता है। मगर इस दिन को केवल स्त्री-पुरूष प्रेम के लिए ही नहीं जाना जाना चाहिए बल्कि इस दिन कुछ ऎसा हुआ था कि अगर इस तारीख को भारतीय इतिहास की सबसे काले दिनों में शुमार किया जाए तो गलत न होगा। 

आखिर क्या हुआ इस दिन जो इसे बनाता है बेहद काला दिन?

देश की आजादी के सबसे बड़े सितारे शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह की फांसी की सजा पर आज ही के दिन (14 फरवरी, 1931) को अंतिम मुहर लगाई गई थी। आपको बता दें कि, केस की सुनवाई की दौरान भारत में भगत सिंह की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी, और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। जिसे देखते हुए वॉयसराय लॉर्ड इरविन ने 1 मई 1930 को आपतकाल की घोषणा करते हुए इस केस को जल्द खत्म करने की खातिर उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों का एक स्पेशल ट्रिब्यूनल बनाने का अध्यादेश पारित किया था। 

यह अध्यादेश (और ट्रिब्यूनल) न तो सेंट्रल असेंबली में और न ही ब्रिट्रिश संसद में पारित किया गया था अत: यह 31 अक्टूबर 1930 को समाप्त हो जाता। इसी वजह से 7 अक्टूबर, 1930 को ट्रिब्यूनल ने सभी साक्ष्यों के आधार पर अपना 300 पन्नों का निर्णय दिया। ट्रिब्यूनल ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को सांडर्स की मौत का दोषी माना और उन्हें फांसी से मौत की सजा सुनाई। अन्य 12 आरोपियों को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता जस्टिस जी. सी. हल्टन ने की थी। जबकि उसके अन्य सदस्य जस्टिस जे. के. टैप और जस्टिस सर अब्दुल कादिर थे। 

इसके बाद पंजाब में एक रक्षा समिति ने प्रिवी काउंसिल में एक अपील करने के लिए योजना बनाई। भगत सिंह शुरूआत में इस अपील के खिलाफ थे लेकिन बाद में यह सोचकर की शायद इस अपील से ब्रिटेन में भी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन लोकप्रिय होगा मान गए थे। अपील में दावा किया गया था कि जिस अध्यादेश से यह ट्रिब्यूनल बनाया गया था वह अवैध था, जबकि सरकार ने इसका विरोध करते हुए अपना पक्ष रखा था कि वायसराय पूरी तरह से ऎसा ट्रिब्यूनल बनाने के लिए सक्षम हैं। इस अपील को न्यायाधीश विस्काउंट डुनेडिन ने बर्खास्त कर दिया था।

प्रिवी काउंसिल में अपील खारिज होने के बाद, तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी 1931 को इरविन के समक्ष एक दया याचिका लगाई थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया था। और अंतत: 23 मार्च, 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरू को फांसी दे दी गई।

Tuesday 10 February 2015

दिल्ली विधान सभा चुनाव २०१५ में ऐतिहासिक परिवर्तन

दिल्ली विधान सभा चुनाव २०१५  में ऐतिहासिक परिवर्तन : दिल्ली राज्य सभा चुनाव २०१५ का ७० सीटों पर हुए चुनाव का परिणाम विस्तार से प्रकाशित किया जा रहा है.
भारतीय जनता पार्टी (बी जे पी) : भारतीय जनता पार्टी उम्मीद से बहुत ही कम मात्र ३ सीट पर विजय हासिल हो पायी है. इस चुनाव परिणाम में भाजपा को २९ सीट का नुकसान हुआ है.



आम आदमी पार्टी (आप) : आम आदमी पार्टी ने अपनी अलग नीति पर चलकर उम्मीद से अधिक ६७ सीट पर जीत हासिल किया है. इस चुनाव परिणाम में ३९ सीट का लाभ हुआ है आम आदमी पार्टी को.


कांग्रेस पार्टी : कांग्रेस पार्टी को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस को एक भी सीट ना मिली है. इस चुनाव परिणाम में कांग्रेस को ८ सीट का नुकसान हुआ है.

अन्य पार्टियों ने २ सीट पर विजय प्राप्त किया है.






Friday 6 February 2015

भोजपुरी सिनेमा का प्रदर्शन और ठंडी का महीना


भोजपुरी सिनेमा का प्रदर्शन और ठंडी का महीना : आज का हमारा ब्लॉग उत्तर प्रदेश और बिहार  की कड़ाके की ठंडी और हाड़ कंपा देने वाली ठिठुरन और इसी सर्द भरे मौसम में भोजपुरी फिल्मों के प्रदर्शन की अनोखा चरित्र चित्रण करता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार हिन्दी माह पौष और माघ का महीना, जिसे अंग्रेजी महीना में दिसंबर और जनवरी के रूप में जाना जाता है.


इन दो महीनों में सुबह से दोपहर तक घना कोहरा  और दोपहर के २ घंटे के बाद ही दिन का ढलान और शाम जल्दी हो जाती है और रात का आलम तो पूछिए ही मत. कितना भी कम्बल और रजाई ओढ़ लीजिये, जाड़ा कम होता ही नहीं है. माह दिसंबर जहाँ साल का अंतिम महीना होता है वहीँ जनवरी माह नूतन वर्ष के रूप में हर किसी के जीवन में ख़ुशी की नयी उमंग लेकर आता है.

सँईया तूफानी की शूटिंग देखिये इस लिंक में - 
http://www.bhojpurinama.com/video/making-of-upcoming-movie-saiya-tufani-with-monalisa

मंगलमय नववर्ष में फिल्मों का रिलीज होना भी ख़ुशी का माहौल होता है. खासकर भोजपुरी फिल्म के प्रदर्शन की होड़ लग जाती है, परन्तु कड़ाके की ठिठुरन भरी ठंडी से बहुत ही कम फिल्में रिलीज हो पाती हैं. इस नूतनवर्ष के प्रथम माह जनवरी में बिहार, मुंबई, गुजरात के सिनेमाघरों में कई भोजपुरी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया है. 


दिल भईल दिवाना का गीत रिकॉर्डिंग के समय डांस देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/video/kaluaa-dancing-with-hot-actress

9 जनवरी को मुम्बई और गुजरात में भोजपुरी फिल्म दिल भईल दीवाना का सफल प्रदर्शन किया गया. 9 जनवरी को ही बिहार में संईया तूफानी का प्रदर्शन किया गया है. १४ जनवरी मकर संक्रांति पावन पर्व पर विजयपथ एगो जंग का प्रदर्शन सफलता के साथ किया गया. ३० जनवरी को दो भोजपुरी फिल्म का प्रदर्शन (एक) छोरा गंगा किनारे वाला का प्रदर्शन बिहार, मुम्बई, गुजरात में किया तथा (दो) जान तू जहान तू का प्रदर्शन बिहार में  किया है. सभी फिल्मों का अलग अलग सिनेमाघरों में सफल प्रदर्शन जारी है.

भोजपुरी सिनेमा के वीडियो देखने के लिए लॉगिन करें -


Wednesday 4 February 2015

नया साल २०१५ का प्रथम माह जनवरी में प्रदर्शित हुई भोजपुरी फिल्में


नया साल २०१५ का प्रथम माह जनवरी में प्रदर्शित हुई भोजपुरी फिल्में  : भोजपुरी सिनेमा का तीसरा दौर स्वर्णिम काल के रूप में जाना जा रहा है परन्तु पिछले २ साल में बहुत कम ही अच्छी फिल्मों के निर्माण हुआ है.

सँईया तूफानी की शूटिंग देखिये इस लिंक में http://www.bhojpurinama.com/video/making-of-upcoming-movie-saiya-tufani-with-monalisa
हर साल ७० से ९० भोजपुरी फिल्में प्रदर्शित होती हैं मगर  सफल कम असफल ज्यादा होती हैं. ज्यादातर भोजपुरी फिल्मों की पब्लिसिटी भी ठीक से नहीं हो पाती है. सिनेमाहाल में कुछ भोजपुरी फिल्म कब प्रदर्शित कर दी जाती है यह भी पता नहीं चल पाता है. इसके अलावा और भी कई मुख्य कारण है फिल्म की असफलता का जिसके निवारण के लिए एक सामूहिक बैठक की बहुत जरुरत है.

दिल भईल दिवाना का गीत रिकॉर्डिंग के समय डांस देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/video/kaluaa-dancing-with-hot-actress

नववर्ष २०१५ के पहले माह जनवरी में 9 जनवरी को मुम्बई और गुजरात में भोजपुरी फिल्म दिल भईल दीवाना का सफल प्रदर्शन किया गया. 9 जनवरी को ही बिहार में संईया तूफानी का प्रदर्शन किया गया है. १४ जनवरी मकर संक्रांति पावन पर्व पर विजयपथ एगो जंग का प्रदर्शन सफलता के साथ किया गया. ३० जनवरी को दो भोजपुरी फिल्म का प्रदर्शन (एक) छोरा गंगा किनारे वाला का प्रदर्शन बिहार, मुम्बई, गुजरात में किया तथा (दो) जान तू जहान तू का प्रदर्शन बिहार में  किया है. सभी फिल्मों का अलग अलग सिनेमाघरों में सफल प्रदर्शन जारी है.

छोरा गंगा किनारेवाला का मुहूर्त  देखिये 
http://www.bhojpurinama.com/video/film-muhrat-of-chora-ganga-kinare-wala-rajkumar-pandey

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Sunday 1 February 2015

३० जनवरी महात्मा गाँधी जी की पुण्यतिथि : शहीद दिवस


३० जनवरी महात्मा गाँधी जी की  पुण्यतिथि (शहीद दिवस) : मोहनदास कर्मचन्द गांधी  का जन्म २ अक्टूबर १८६० में हुआ था तथा म्रत्यु ३० जनवरी १९४८ को हुआ था. भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन  के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह  (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादीदिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है।संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। 
गांधी को महात्मा की उपाधि सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने प्रदान की थीरवीन्द्रनाथ टेगौर ने नहीं। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गान्धी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं।[2] प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु रोजगार करना शुरू किया। 1915 में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा।
गान्धी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रक्खे।
साभार :  विकिपीडिया