Friday 19 December 2014

भोजपुरी के पितामह भिखारी ठाकुर जयंती

भोजपुरी के पितामह श्री भिखारी ठाकुर का जन्म १८ दिसम्बर १८८७  को बिहार के  सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में हुआ था जो आज भी पिछड़ा इलाका है। आज के आधुनिक सुधाओं बावजूद भी इस गाँव में जाने के नाँव से नदी पार करके जाना पड़ता है। बूड़ा बाढ़ का प्रकोप आज भी सहन करता है कुतुबपुर गाँव। -भिखारी ठाकुर जी का देहावसान १० जुलाई सन १९७१ को हुआ था। भोजपुरी के समर्थ लोक भिखारी ठाकुर कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, नारी विमर्श एवं दलित विमर्श के उद्घोषक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें 'भोजपुरी का शेक्शपीयर' कहा जाता है।
वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया।

भिखारी ठाकुर का बिदेसिया नाटक का देखिये पहला भाग -
http://bhojpurinama.com/trendsplay/dM_wIyvtb1w/Bidesia-Part1

भिखारी ठाकुर की जीवनी :-
भिखारी ठाकुर का जन्म १८ दिसम्बर १८८७ को बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर व माताजी का नाम शिवकली देवी था।
वे जीविकोपार्जन के लिये गाँव छोड़कर खड़गपुर चले गये। वहाँ उन्होने काफी पैसा कमाया किन्तु वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। रामलीला में उनका मन बस गया था। इसके बाद वे जगन्नाथ पुरी चले गये।
अपने गाँव आकर उन्होंने एक नृत्य मण्डली बनायी और रामलीला खेलने लगे। इसके साथ ही वे गाना गाते एवं सामाजिक कार्यों से भी जुड़े। इसके साथ ही उन्होने नाटक, गीत एवं पुस्तके लिखना भी आरम्भ कर दिया। उनकी पुस्तकों की भाषा बहुत सरल थी जिससे लोग बहुत आकृष्ट हुए। उनकी लिखी किताबें वाराणसी, हावड़ा एवं छपरा से प्रकाशित हुईं। १० जुलाई सन १९७१ को चौरासी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

भिखारी ठाकुर का बिदेसिया नाटक का देखिये दूसरा  भाग -
http://bhojpurinama.com/trendsplay/dJwEkAtCSkY/Bidesia-Part-2

मुख्य कृतियाँ:-
लोकनाटक
बिदेसिया
भाई-बिरोध
बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा
कलयुग प्रेम
गबर घिचोर
गंगा स्नान (अस्नान)
बिधवा-बिलाप
पुत्रबध
ननद-भौजाई
बहरा बहार,
कलियुग-प्रेम,
राधेश्याम-बहार,
बिरहा-बहार,
नक़ल भांड अ नेटुआ के। 
अन्य रचना :-
शिव विवाह, भजन कीर्तन: राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन: कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बुढशाला के बयाँ, चौवर्ण पदवी, नाइ बहार, शंका समाधान, विविध।

भिखारी ठाकुर का बिदेसिया नाटक का देखिये दूसरा  भाग -
http://bhojpurinama.com/trendsplay/1_A9O0u_Th0/Bidesia-Part-3

उनकी एक रचना का यहाँ उल्लेख :-
हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा, कि अपना बसे रे परदेस!
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाइ गइले, मारी रे करेजवा में तीर!!
हे ऽ ऽ ऽ ऽ दोहाई हऽ दोहाई हऽ
कजरी नजरिया से खेलइ रे बदरिया, कि बरसइ रकतवा के नीर!
दरदी के मारे छाइ जरदी चनरमा पे, गरदी मिली रे तकदीर!!
तकदीर दोहाई हऽ दोहाई हऽ
चढ़ते फगुनवा सगुनवा मनावइ गोरी, चइता करे रे उपवास!
गरमी बेसरमी ना बेनिया डोलाये माने, डारे सँइया गरवा में फाँस!!
हो हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा, कि अपना बसे रे परदेस!
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाइ गइले, मारी रे करेजवा में तीर!!

हँसि हँसि पनवा खियवले बेइमनवा... इस गीत को देखिये इस लिंक में -http://bhojpurinama.com/trendsplay/k20HGsWfxgY/Bhojpuri-Bidesiya-Hansi-hansi-panwa

ये गीत बिहार रत्न से सम्मानित स्वर्गीय भिखारी ठाकुर जी का लिखा हुआ है,जिसे मन्ना डे ने गाया है और इसे भोजपुरी फिल्म “विदेशिया” में लिया गया था। ये विरह का अमर गीत आजतक लोकप्रिय है। 

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