
पूजा की विधि :- व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल्लर करवा चौथ के व्रत की शुरुआत किया जाता है । 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
पूरे दिन निर्जला रहकर यह व्रत किया जाता है। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावल के घोल से करवा को चित्रित किया जाता है। इसे वर कहते हैं। आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, पक्के पकवान बनाया जाता है। पीली मिट्टी से माँ गौरी की मूर्ती बनाकर उनकी गोद में गणेशजी को बिठाया जाता है। माँ गौरी को चुनरी, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है। जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है। गौरी - गणेश जी की श्रद्धा अनुसार पूजा की जाती है। पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुननें के करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें करवा भेंट करते हैं। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं इसके बाद पति से आशीर्वाद पाकर व्रत पूर्ण होता है।

इस पर्व को मनाने के पीछे महिलाओं के पति प्रेम, पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ-साथ भारतीय नारियों के त्यागमय जीवन के दर्शन होते हैं।
इस पर्व में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला श्रृंगार वास्तव में प्रकृति का श्रृंगार है। प्रकृति और पुरुष के रूप में पत्नी और पति के शुभ संकल्पों की उदार भावना का यह पर्व वेद की इस ऋचा का अनुपालन है।
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