Friday 10 October 2014

करवा चौथ का व्रत और महत्व

करवा चौथ का व्रत :- हिन्दू धर्म में साल के बारह महीने तक हर दिन - हर रात को धर्म कर्म से जोड़ा गया है। यहां तक कि मनुष्य का जीवन  जन्म से मृत्यु तक  कोई ना कोई रीति - रिवाज़ एवं धर्म - कर्म से  जुड़ा हुआ है। इसी कड़ी में  कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष में दीपावली त्यौहार के 11 दिन पहले तथा शरद पूर्णिमा के चौथे दिन चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है।  यह पर्व  भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में विवाहित महिलाओं द्वारा करवा (मिटटी का बना हुआ बर्तन) की पूजा करके चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य  देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

पूजा की विधि :- व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल्लर करवा चौथ के व्रत की शुरुआत किया जाता है । 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
पूरे दिन निर्जला रहकर यह व्रत किया जाता है। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावल के घोल से करवा को चित्रित किया जाता है।  इसे वर कहते हैं। आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, पक्के पकवान बनाया जाता है।  पीली मिट्टी से माँ गौरी की मूर्ती बनाकर उनकी गोद  में गणेशजी को बिठाया जाता है। माँ गौरी को चुनरी, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है। जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है। गौरी - गणेश जी की श्रद्धा अनुसार पूजा की जाती है। पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुननें के करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें करवा भेंट करते हैं। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं इसके बाद पति से आशीर्वाद पाकर व्रत पूर्ण होता है।

करवा चौथ का महत्व :-  करवा चौथ पर्व का महत्व पौराणिक महाभारत काव्य  में भी वर्णन किया गया है। वनवास काल के दौरान अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि पर्वत पर चले जाते हैं और दूसरी ओर पांडवों पर कई संकट आने वाले हैं जानकर द्रोपदी चिंता में पड़ गयी। श्रीकृष्ण द्रोपदी बताते है कि यदि वह कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का करने से उसके पांडव पति को संकट से मुक्ति मिल जाएगी। तब से यह व्रत मनाया जाता है। 
 इस पर्व को मनाने के पीछे महिलाओं के पति प्रेम, पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ-साथ भारतीय नारियों के त्यागमय जीवन के दर्शन होते हैं।
 इस पर्व में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला श्रृंगार वास्तव में प्रकृति का श्रृंगार है। प्रकृति और पुरुष के रूप में पत्नी और पति के शुभ संकल्पों की उदार भावना का यह पर्व वेद की इस ऋचा का अनुपालन है।

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