भारत के अमूल्य रत्न दादा साहब फाल्के का आज 145वाँ जन्मदिवस है। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को नासिक के निकट 'त्र्यंबकेश्वर' में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित और मुम्बई के 'एलफिंस्टन कॉलेज' के अध्यापक थे। अत: इनकी शिक्षा मुम्बई में ही हुई। वहाँ उन्होंने 'हाई स्कूल' के बाद 'जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट' में कला की शिक्षा ग्रहण की। फिर बड़ौदा के कलाभवन में रहकर अपनी कला को सान पर चढ़ाया।
दादा साहेब डॉक्यूमेंट्री फिल्म देखिए इस लिंक को ओपन करके -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/y_q_m7GpeVY/Maharshi-Dadasaheb-Phalke-Documentary

पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्चन्द्र देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/QTCrP31V0iQ/RAJA-HARISHCHANDRA---1913---Dadasaheb-Phalke
सिनेमा के बारे मे अधिक जानकारी हासिल करने के लिए वे अत्यधिक शोध करने लगे। इस क्रम में उन्हें आराम का कम समय मिला, निरंतर फ़िल्म देखने, अध्ययन और खोज में लगे रहने से फाल्के बीमार पड गए। कहा जाता है कि बीमारी के दौरान भी उन्होंने अपने प्रयोग जारी रखते हुए ‘मटर के पौधे’ के विकास कालक्रम का छायांकन कर फ़िल्म बना दी। कालांतर में इन अनुभवों को फ़िल्म निर्माण में लगाया। फ़िल्म बनाने की मूल प्रेरणा फाल्के को ‘लाइफ़ आफ़ क्राइस्ट देखकर मिली, इस फ़िल्म को देखकर उनके मन मे विचार आया कि क्या भारत में भी इस तर्ज़ पर फ़िल्म बनाई जा सकती हैं? फ़िल्म कला को अपना कर उन्होंने प्रश्न का ठोस उत्तर दिया। फ़िल्म उस समय मूलत: विदेशी उपक्रम था और फ़िल्म बनाने के लिए अनिवार्य तकनीक उस समय भारत में उपलब्ध नहीं थी, इसलिए फाल्के सिनेमा के ज़रुरी उपकरण लाने के लिए लंदन गए। लंदन में उनकी मुलाकात जाने-माने निर्माता और ‘बाइस्कोप’ पत्रिका के सम्पादक सेसिल हेपवोर्थ से हुई, कहा जाता है कि फाल्के को फ़िल्म सामग्री ख़रीदने में सेसिल हेपवोर्थ ने उनका मार्गदर्शन किया।
दादा साहब फाल्के ने 3 मई 1913 को बंबई के 'कोरोनेशन थिएटर' में 'राजा हरिश्चंद्र' नामक अपनी पहली मूक फ़िल्म दर्शकों को दिखाई थी। 20 वर्षों में उन्होंने कुल 95 फ़िल्में और 26 लघु फ़िल्में बनाई। दादा साहब फाल्के के फ़िल्म निर्माण की ख़ास बात यह है कि उन्होंने अपनी फ़िल्में बंबई के बजाय नासिक में बनाई।
दादा साहेब फाल्के की श्रद्धांजली देखिये इस लिंक में - http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/C6mBoYN3v_s/Tribute-To-Dada-Saheb-Falke
वर्ष 1913 में उनकी फ़िल्म 'भस्मासुर मोहिनी' में पहली बार दुर्गा गोखले और कमला गोखले नामक महिलाओं ने महिला किरदार निभाए। इससे पहले पुरुष ही महिला किरदार निभाते थे। 1917 तक वे 23 फ़िल्में बना चुके थे। उनकी इस सफलता से कुछ व्यवसायी इस उद्योग की ओर आकृष्ट हुए और दादा साहब की साझेदारी में ‘हिन्दुस्तान सिनेमा कम्पनी’ की स्थापना हुई। दादा साहब ने कुल 125 फ़िल्मों का निर्माण किया। जिसमें से तीन-चौथाई उन्हीं की लिखी और निर्देशित थीं। दादा साहब की अंतिम मूक फ़िल्म 'सेतुबंधन' 1932 थी, जिसे बाद में डब करके आवाज़ दी गई। उस समय डब करना भी एक शुरुआती प्रयोग था। दादा साहब ने जो एकमात्र बोलती फ़िल्म बनाई उसका नाम 'गंगावतरण' है।16 फ़रवरी, 1944 को नासिक में 'दादा साहब फाल्के' का निधन हुआ। इस महान कला पारखी को मेरा नमन।
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