फाल्गुन मास की शुरुआत बसंत ऋतु के रूप में होती है। वसंत के स्वागत में प्रकृति का कण-कण खिलने लगा है। पेड़-पौधों-फूलों पर बहार, खेतों में सरसों का चमकता सोना, गेहूं की सुडौल बालियां, आम के पेड़ों पर लदे बौर ऋतुराज के अभिनंदन में नत मस्तक हो रहे हैं। मौसम सुहाना हो गया है। न अधिक गर्मी है न अधिक ठंड। पूरे वर्ष को जिन छः ऋतुओं में बांटा गया है, उनमें वसंत मनभावन मौसम है।
इस माह में चैता का विशेष महत्त्व है देखिये इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/ trendsplay/dc3aTd6sSfk/Chait% 2Bmaas-chaita%2Bgeet% 2528Bhojpuri%2529Meghdoot% 2BKi%2BPoorvanchal%2BYatra
गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी, नवरेह, चेटीचंड, उगाड़ी, चित्रेय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नवसंवत्सर के आसपास आती हैं। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है।
फाल्गुन माह की अंतिम रात (पूर्णिमा) पूनम की रात को होली जलाकर ख़ुशी मनायी जाती है। साल की आखिरी रात होती है। सुबह नयी ताज़गी साथ चैत्र महीने का पहिला दिन नववर्ष का आरम्भ होता है जिसे रंग गुलाल के साथ लोगो से गले मिलकर होली के रूप में मनाया जाता है।
नववर्ष की शुरुआत का महत्व :-
कोयल की कुंतर पुकार
कोयल की कुंतर पुकार
बाग-बगीचों में बौराए हैं आम।
हर घर में सजी है गुड़ी
नववर्ष की आई है सुहानी घड़ी।।
हिन्दी नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियां मार्च और अप्रैल के महीनों में आती हैं। इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। फिर भी पूरा देश चैत्र माह में ही नववर्ष मनाता है और इसे नवसंवत्सर के रूप में जाना जाता है।
इस माह में चैता का विशेष महत्त्व है देखिये इस लिंक में -
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गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी, नवरेह, चेटीचंड, उगाड़ी, चित्रेय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नवसंवत्सर के आसपास आती हैं। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है।
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