साठ का दशक तथा भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत :-
साठ के दशक में कहने के लिए यह सफ़र शुरू तो हो गया लेकिन इसकी राहें आसान न थीं, हालांकि साठ और सत्तर के दशक में भोजपुरी फिल्में बनती रही लेकिन काफी अंतराल के बाद 1963 में एस. एन.त्रिपाठी निर्देशित ''बिदेसिया''काफी चर्चा में रही। जिसके हीरो थे सुजीत कुमार। इसके बाद लागी छूटे नाही राम, गंगा, भउजी इत्यादि भोजपुरी फिल्में प्रदर्शित हुई।
साठ के दशक में कहने के लिए यह सफ़र शुरू तो हो गया लेकिन इसकी राहें आसान न थीं, हालांकि साठ और सत्तर के दशक में भोजपुरी फिल्में बनती रही लेकिन काफी अंतराल के बाद 1963 में एस. एन.त्रिपाठी निर्देशित ''बिदेसिया''काफी चर्चा में रही। जिसके हीरो थे सुजीत कुमार। इसके बाद लागी छूटे नाही राम, गंगा, भउजी इत्यादि भोजपुरी फिल्में प्रदर्शित हुई।
भोजपुरी सिने जगत के पहले सुपर स्टार का उदय (कुणाल सिंह) :-
60 & 70 के दशक में भोजपुरी फिल्मों का निर्माण ज्यादा न होते हुए भी 80 का दशक बसंत ऋतु की तरह था। सन 1980 में *धरती मईया* फिल्म का निर्माण हुआ जिसके जरिये भोजपुरी सिनेमा के महानायक *कुणाल सिंह* का आगमन हुआ, इनका भोजपुरी सिनेमा में तैतीसवाँ वर्ष पूरा हो चुका है।
60 & 70 के दशक में भोजपुरी फिल्मों का निर्माण ज्यादा न होते हुए भी 80 का दशक बसंत ऋतु की तरह था। सन 1980 में *धरती मईया* फिल्म का निर्माण हुआ जिसके जरिये भोजपुरी सिनेमा के महानायक *कुणाल सिंह* का आगमन हुआ, इनका भोजपुरी सिनेमा में तैतीसवाँ वर्ष पूरा हो चुका है।
हिन्दी सिनेमा में भी भोजपुरी फ़िल्म ने स्टार दिया :- ये वह दौर था जब भोजपुरी में इंतनी ज्यादा फिल्में बननी शुरू हुई कि एक इंडस्ट्री की तरह काम होने लगा। इसका श्रेय जाता है 1982 में हिंदी-भोजपुरी में बनी फिल्म *नदिया के पार* को .. राजश्री के बैनर तले गोविन्द मुनीस निर्देशित इस फिल्म ने रिकार्ड तोड़ बिजनेस किया। इसके गानों ने हिंदी भाषी इलाकों और भोजपुरी भाषी प्रान्तों में धूम मचा दी तथा दो कलाकार "सचिन पिलगावकर" और "साधना सिंह" स्टार बन गये।
भोजपुरी सिनेमा के निर्माण में चढ़ाव तथा उतार :-
1983 में ही हमार भौजी को बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी मिली। इसे निर्देशित किया था कल्पतरु ने। अस्सी का दशक समाप्त होते होते सन 1989 में राजकुमार शर्मा निर्देशित फिल्म "माई" ने एक बार फिर भोजपुरी फिल्मों का परचम लहराया।
1983 में ही हमार भौजी को बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी मिली। इसे निर्देशित किया था कल्पतरु ने। अस्सी का दशक समाप्त होते होते सन 1989 में राजकुमार शर्मा निर्देशित फिल्म "माई" ने एक बार फिर भोजपुरी फिल्मों का परचम लहराया।
लेकिन 1990 का दशक करीब करीब भोजपुरी सिनेमा के लिए एक ताबूत में कील की तरह साबित हुआ। पूरे दस साल भोजपुरी सिनेमा की हालत यूँ थी मानो ऑक्सीजन पर हो।
भोजपुरी सिनेमा के दूसरे सुपर स्टार का आगमन (रवि किशन) :-
इक्कीसवीं सदी शुरू होते ही सन 2001 में एक भोजपुरी फिल्म आई जिसने इस इंडस्ट्री में दुबारा प्राण फूँकने का काम किया। मोहनजी प्रसाद द्वारा निर्देशित इस फिल्म का नाम था - "सईंया हमार", जिसने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनाई और इसके हीरो थे "रवि किशन" जो भोजपुरी फिल्मों के आने वाले सुपर स्टार हो गये।
इक्कीसवीं सदी शुरू होते ही सन 2001 में एक भोजपुरी फिल्म आई जिसने इस इंडस्ट्री में दुबारा प्राण फूँकने का काम किया। मोहनजी प्रसाद द्वारा निर्देशित इस फिल्म का नाम था - "सईंया हमार", जिसने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनाई और इसके हीरो थे "रवि किशन" जो भोजपुरी फिल्मों के आने वाले सुपर स्टार हो गये।
भोजपुरी सिनेमा की कामयाबी का सफ़र :- सन 2005 - 06 एक ऐसा साल था जब भोजपुरी सिनेमा ने डंके के चोट पर अपने वजूद का एलान कर दिया। कामयाबी और बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्मों का ताँता सा लग गया। ये मुमकिन हुआ दो फिल्मों से *पंडितजी बताईं ना बियाह कब होई* और *ससुरा बड़ा पईसा वाला* से। ये भोजपुरी सिनेमा की दो ऐसी फिल्में थीं जिन्होंने बिहार और उत्तर प्रदेश में उस वक्त रिलीज हुयी हिंदी फिल्में *बंटी और बबली* तथा *मंगल पाण्डेय* से ज्यादा व्यवसाय किया।
अब तो आलम यह है कि दक्षिण भारत एवं नेपाली फिल्मों को भोजपुरी भाषा में डब करके प्रदर्शित किया जा रहा है और अब ढेर सारी हिंदी की हिट फिल्मों का भोजपुरी में डब करने की योजना बनाई जा रहीं है।
दूसरा भाग समाप्त : अगला भाग आप पढ़िये शुक्रवार को शाम के समय।
नोट : हमारा हर पोस्ट प्रत्येक सप्ताह मंगलवार और शुक्रवार को किया जायेगा।
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