रामायण तिवारी, एक
ऐसा नाम
जिन्होंने हिंदी
फिल्म जगत
में बिहार
के एक
पिछड़े गांव
से जाकर
ना सिर्फ अपना
एक मुकम्ल स्थान हासिल
किया बल्कि
बिहार की
भाषा भोजपुरी फिल्मो की
शुरुवात भी
अपने गाव
से की।
यही नहीं
उनका गाव
बिहार का
पहला ऐसा गॉंव है
जहां पहली
बार किसी
भी फीचर
फिल्म की
शूटिंग हुई
है।
जीवन परिचय : बिहार
की राजधानी पटना जिले
के एक
छोटे से गाँव मनेर
के एक
साधारण खेतिहर परिवार में
रामायण तिवारी का जन्म
हुआ था। उनका
जन्म किस
साल और
किस तारीख
को हुआ
था इसकी
सही जानकारी किसी के
पास उपलब्ध नहीं है
पर उनके
पोते सुजीत
तिवारी के
अनुसार, उनके
दादा जी
बताया करते
थे जब
देश आजाद
हुआ तब
वो लगभग
३० साल
के थे। अंग्रेज़ो की गुलामी में सांस
लेने वाले
रामायण तिवारी बचपन से
ही विद्रोही स्वभाव के
थे और
यही वजह
थी की
उन्होंने किशोरावस्था में कदम
रखते ही
अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत शुरू कर
दी। मनेर
के ही
स्कूल से
मेट्रिक तक
की पढ़ाई
करने के
बाद उन्होंने आगे की
पढ़ाई जारी
ना रखने
का फैसला
किया और
आज़ाद हिन्द
फ़ौज के
कामरेडों के
संपर्क में
आ गए। माता
पिता के
दबाब के
कारण वो
खेत में
काम भी
करते थे
और आज़ादी
की गतिविधियों में भी
हिस्सा लेते
थे।
आखिरकार, १९४२
के भारत
छोडो आंदोलन के दौरान
उन्होंने अपने
एक कामरेड दोस्त के
साथ पटना
से ट्रैन
में बैठ
कर मनेर
को अलविदा कह दिया। कहा
जाता है ट्रेन में
सफर के
ही दौरान
वो एक
अँगरेज़ सहयात्री से उलझ
गए और
गुस्से में
उन्होंने उस
अँगरेज़ को ट्रेन के बाहर फेंक
दिया।
अगले स्टेशन पर उन्होंने ट्रेन बदल
लिया और
सीधे मुंबई
पहुंच गए।
मुंबई में संघर्ष के दिन : मनेर जैसे छोटे से गॉंव के युवक के लिए महानगर मुंबई एक सपने जैसा था। जेब में पैसे नहीं थे, लेकिन दिल में देशभक्ति का जज्बा कूट कूट कर भरा था। सौभाग्य बस उन्हें प्रभात स्टूडियो में छोटी सी नौकरी मिल गयी। इस स्टूडियो में फिल्मो की शूटिंग होती थी। रामायण तिवारी दिन में इस स्टूडियो में काम करते थे और रात में आजादी की लड़ाई में शामिल लोगो से मिलते जुलते थे। एकाध साल बाद ही देश की आजादी का मार्ग खुल गया और लोगो को पता चल गया की अब देश का आज़ाद होना तय है।
फिल्म जगत में पदार्पण : इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिसने रामायण तिवारी के जीवन को ही बदल दिया। हुआ यूँ की प्रभात स्टूडियो में मन मंदिर फिल्म की शूटिंग चल रही थी लेकिन एक चरित्र अभिनेता शूटिंग के लिए नहीं पहुंचा। निर्देशक के कहने पर रामायण तिवारी ने उस भूमिका को किया। उस छोटी सी भूमिका में ही उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का गजब का परिचय दिया और यहीं से शुरू हो गया उनका फ़िल्मी सफर। देश आजाद हो चुका था , मकसद पूरा हो चुका था और इस तरह वे पूरी तरह अभिनय के क्षेत्र में उतर गए। चूँकि वो घर से बिना किसी को कुछ बताये भाग कर आये थे इसीलिए घर से नाता बिल्कुल ही टूटा था लेकिन रामायण तिवारी को उनका गाव , उनका परिवार बहुत याद आता था । इधर आठ दस साल बाद उनके घर वालो ने उन्हें मरा मान लिया और रीती रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करने का फैसला किया लेकिन इसी बीच एक दिन मनेर के किसी युवक ने किसी फिल्म में रामायण तिवारी को देखा। मनेर तक यह बात पहुंची तो पूरा गाव उस फिल्म को देखने के लिए उमड़ पड़ा। रामायण तिवारी के घर वालो को ख़ुशी का ठिकाना नहीं रही। इसी बीच अचानक रामायण तिवारी अपने गाव लौट गए। कुछ दिन गाव में रहने के बाद उन्होंने फिर से मुंबई की और रुख किया। इस दौरान उन्होंने कई यादगार फिल्मे की।
रामायण तिवारी ने उस दौर के सभी बड़े निर्देशकों साथ काम किया : प्रभात स्टूडियो ने उस दौर में तीन मंझे हुए खलनायक को जन्म दिया था जिनमे प्राण , जयंत ( अमजद खान के पिता ) और रामायण तिवारी शामिल थे। रामायण तिवारी ने उस दौर के सभी बड़े निर्देशकों जैसे विमल रॉय , शोहराब मोदी के साथ साथ राजकपूर के निर्देशन में भी काम करने का सौभाग्य पाया। उनकी चर्चित फिल्मो में यहूदी, नीलकमल, जिस देश में गंगा बहती है, पत्थर के सनम, पोस्ट बॉक्स 999, गोपी, दुश्मन , महाभारत, मधुमती , दो बीघा जमीं इत्यादि शामिल है। अपने ३६ वर्ष के फ़िल्मी सफर में उन्होंने लगभग १२५ फिल्मो में अभिनय किया। स्वतंत्रता सेनानी रामायण तिवारी फिल्म जगत में अपने उपनाम तिवारी के नाम से मशहूर थे , यहां तक की फ़िल्मी परदे पर भी उनका नाम तिवारी ही लिख के आता था . देशभक्त रामायण तिवारी अपने दौर के बिहार के राजनेताओं के बीच भी काफी मशहूर थे। यहां तक की जय प्रकाश नारायण जब भी मुंबई आते थे उनके सायन स्थित आवास पर अवश्य जाते थे।
कैंसर पीड़ित परिवार की करते थे मदद : उस ज़माने में कैंसर का एकमात्र बड़ा हॉस्पिटल मुंबई में ही था। बिहार से उनके जानने वाले लोग अक्सर इनके नाम की चिट्ठी लिखकर कैंसर पीड़ित परिवार को देते थे। रामायण तिवारी ने कभी किसी को निराश नहीं किया और हर संभव उनकी मदद की।
पहली भोजपुरी फिल्म - ‘‘गंगा मइया तोहे पियरीचढ़इबो'' एक गीत इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/video/sonwa-ke-pinjra-mein-song-of-film-ganga-maiya-tohe-piyari-chadhaibo
पहली भोजपुरी फिल्म का निर्माण : तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का भी आशीर्वाद इन्हे प्राप्त था। दिलचस्प बात तो यह है की डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने भोजपुरी की अपनी फिल्म हो , इसकी मंशा सर्वप्रथम इनके पास ही जाहिर की थी। डॉ राजेन्द्र प्रसाद उनके प्रेरणा श्रोत रहे थे, उनकी बातों ने रामायण तिवारी को काफी प्रभावित किया क्योंकि बिहार की भाषा में फिल्म निर्माण की बात हुई थी। साथ ही वे प्रसिद्द मराठी फिल्मकार वी शांताराम के क्रियाकलाप और अपनी भाषा मराठी के प्रति प्रेम से उनके कायल थे। अब उनके दिमाग में बस एक ही धून सवार थी भोजपुरी फिल्म का निर्माण लेकिन उनके पास इसके लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस सन्दर्भ में बिहार के ही एक उद्द्योग्पति से चर्चा की थी। रामायण तिवारी उनके संपर्क में आये और शुरू हो गयी फिल्म निर्माण की प्रक्रिया। रामायण तिवारी ने ही पूरी फिल्म की रूपरेखा तैयार की और उस दौर के सभी अच्छे कलाकारों को भोजपुरी फिल्म में काम करने के लिए प्रेरित किया। इस काम में उनका साथ दिया राजकपूर ने जो रामायण तिवारी के काफी करीब थे। भोजपुरी की पहली फिल्म गंगा मैया तोहे पियरे चढ़इबो के गानो की रिकॉर्डिंग से लेकर रिलीज़ होने तक सारा कार्य इनके देख रेख में ही संपन्न हुआ। इस फिल्म में महमूद, हेलेन, कुमकुम, अशीम कुमार, नज़ीर हुसैन, मुकरी आदि कुछ चर्चित नाम थे। फिल्म की शूटिंग इनके ही गाव मनेर में हुई और सारे कलाकार उनके ही घर पर ठहरे थे।
भोजपुरी फिल्म लागी नाही छूटे राम का एक गीत देखिये में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/RGdFGkUlVOQ/LAAGI-NAHIN-CHOOTE-RAMA---Talat-Lata---LAAGI-NAHIN-CHHUTE-RAM-1963-
इस फिल्म के निर्माण के तुरत बाद ही रामायण तिवारी ने बतौर निर्माता निर्देशक एक और भोजपुरी फिल्म लागी नाही छूटे राम के निर्माण का कार्य शुरू किया। इस फिल्म में भी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी थी। चित्रगुप्त का संगीत था और कलाकार भी वही थे। उनकी सोच सफल हुई और लागी नाही छूटे रामा का निर्माण हुआ। यह फिल्म बहुत ही कामयाब और सुपर हिट रही तथा आज तक भारत में तथा भोजपुरी बोलने वाले विश्व भर में रह रहे लोगों में विशेषकर मारीशस और अन्य देशों में इसकी काफी मांग है। दिलचस्प बात यह है की जिस दिन लागि नाही छूटे रामा रिलीज़ होने वाली थी उसी दिन उस दौर के सुपर स्टार प्रदीप कुमार की फिल्म ताजमहल रिलीज़ हो रही थी। सबने मना किया पर रामायण तिवारी को अपनी फिल्म और अपने भोजपुरिया दर्शको पर पूरा भरोसा था। फिल्म रिलीज़ हुई और फिल्म ने बिहार में ताजमहल से भी अधिक का व्यवसाय किया। इस फिल्म ने ही भोजपुरी फिल्मों को भारतीय फिल्म उद्योग की मुख्य धारा में लाने का गौरव हासिल किया। यह सिर्फ दूरदर्शी रामायण तिवारी की इच्छा शक्ति थी जिसने जनता के लिए भोजपुरी फिल्म उद्योग का निर्माण किया इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आज तेलगू, तमिल और हिन्दी के बाद भोजपुरी फिल्में सबसे अधिक भारतीय दर्शकों द्वारा देखी जाती हैं।
लाल लाल ओठवा पे यह
गीत देखिये भोजपुरी फिल्म लगे नाही छूटे राम के इस लिंक को ओपन करके –
हिंदी फिल्म 'धरती कहे पुकार के' की पूरी शूटिंग मनेर में : रामायण तिवारी का कदम
यही नहीं
रुका उन्होंने मनेर की
उसी भूमि
को उस
दौर के
सुपर स्टार
जीतेन्द्र और
नंदा से
परिचय करवाया और हिंदी
फिल्म धरती
कहे पुकार
के की
पूरी शूटिंग मनेर में
करवाई। यह
रामायण तिवारी की उपलब्धि ही कही
जायेगी की
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे
की आत्मकथा ( बाल
ठाकरे एंड
द राइज
ऑफ़ शिवसेना ) के
पेज नंबर
५५ पर
फिल्म जगत
के एक
प्रसंग पर
लेखक बैभव
पुरंदरे ने
रामायण तिवारी का जिक्र
किया है।
मुंबई में निधन : हिंदी और भोजपुरी फिल्म के इस प्रतिष्ठित व्यक्तित्व , भोजपुरी फिल्मो के जन्मदाता और बिहार के पहले फ़िल्मी कलाकार का 9 मार्च, 1980 को मुंबई में निधन हो गया तथा अपने पीछे एक विरासत छोड़ गया जिसकी आने वाले समय में बराबरी नहीं की जा सकती है। आज उनकी तीसरी पीढ़ी भोजपुरी फिल्म जगत में सक्रिय है। उनके पुत्र स्वर्गीय भूषण तिवारी ने भी अभिनय के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायीं और अब उनके पोत्र सुजीत तिवारी की गिनती भोजपुरी के बड़े निर्माता और फाइनेंसर के रूप में होती है।
मुंबई में संघर्ष के दिन : मनेर जैसे छोटे से गॉंव के युवक के लिए महानगर मुंबई एक सपने जैसा था। जेब में पैसे नहीं थे, लेकिन दिल में देशभक्ति का जज्बा कूट कूट कर भरा था। सौभाग्य बस उन्हें प्रभात स्टूडियो में छोटी सी नौकरी मिल गयी। इस स्टूडियो में फिल्मो की शूटिंग होती थी। रामायण तिवारी दिन में इस स्टूडियो में काम करते थे और रात में आजादी की लड़ाई में शामिल लोगो से मिलते जुलते थे। एकाध साल बाद ही देश की आजादी का मार्ग खुल गया और लोगो को पता चल गया की अब देश का आज़ाद होना तय है।
फिल्म जगत में पदार्पण : इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिसने रामायण तिवारी के जीवन को ही बदल दिया। हुआ यूँ की प्रभात स्टूडियो में मन मंदिर फिल्म की शूटिंग चल रही थी लेकिन एक चरित्र अभिनेता शूटिंग के लिए नहीं पहुंचा। निर्देशक के कहने पर रामायण तिवारी ने उस भूमिका को किया। उस छोटी सी भूमिका में ही उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का गजब का परिचय दिया और यहीं से शुरू हो गया उनका फ़िल्मी सफर। देश आजाद हो चुका था , मकसद पूरा हो चुका था और इस तरह वे पूरी तरह अभिनय के क्षेत्र में उतर गए। चूँकि वो घर से बिना किसी को कुछ बताये भाग कर आये थे इसीलिए घर से नाता बिल्कुल ही टूटा था लेकिन रामायण तिवारी को उनका गाव , उनका परिवार बहुत याद आता था । इधर आठ दस साल बाद उनके घर वालो ने उन्हें मरा मान लिया और रीती रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करने का फैसला किया लेकिन इसी बीच एक दिन मनेर के किसी युवक ने किसी फिल्म में रामायण तिवारी को देखा। मनेर तक यह बात पहुंची तो पूरा गाव उस फिल्म को देखने के लिए उमड़ पड़ा। रामायण तिवारी के घर वालो को ख़ुशी का ठिकाना नहीं रही। इसी बीच अचानक रामायण तिवारी अपने गाव लौट गए। कुछ दिन गाव में रहने के बाद उन्होंने फिर से मुंबई की और रुख किया। इस दौरान उन्होंने कई यादगार फिल्मे की।
रामायण तिवारी ने उस दौर के सभी बड़े निर्देशकों साथ काम किया : प्रभात स्टूडियो ने उस दौर में तीन मंझे हुए खलनायक को जन्म दिया था जिनमे प्राण , जयंत ( अमजद खान के पिता ) और रामायण तिवारी शामिल थे। रामायण तिवारी ने उस दौर के सभी बड़े निर्देशकों जैसे विमल रॉय , शोहराब मोदी के साथ साथ राजकपूर के निर्देशन में भी काम करने का सौभाग्य पाया। उनकी चर्चित फिल्मो में यहूदी, नीलकमल, जिस देश में गंगा बहती है, पत्थर के सनम, पोस्ट बॉक्स 999, गोपी, दुश्मन , महाभारत, मधुमती , दो बीघा जमीं इत्यादि शामिल है। अपने ३६ वर्ष के फ़िल्मी सफर में उन्होंने लगभग १२५ फिल्मो में अभिनय किया। स्वतंत्रता सेनानी रामायण तिवारी फिल्म जगत में अपने उपनाम तिवारी के नाम से मशहूर थे , यहां तक की फ़िल्मी परदे पर भी उनका नाम तिवारी ही लिख के आता था . देशभक्त रामायण तिवारी अपने दौर के बिहार के राजनेताओं के बीच भी काफी मशहूर थे। यहां तक की जय प्रकाश नारायण जब भी मुंबई आते थे उनके सायन स्थित आवास पर अवश्य जाते थे।
कैंसर पीड़ित परिवार की करते थे मदद : उस ज़माने में कैंसर का एकमात्र बड़ा हॉस्पिटल मुंबई में ही था। बिहार से उनके जानने वाले लोग अक्सर इनके नाम की चिट्ठी लिखकर कैंसर पीड़ित परिवार को देते थे। रामायण तिवारी ने कभी किसी को निराश नहीं किया और हर संभव उनकी मदद की।
पहली भोजपुरी फिल्म - ‘‘गंगा मइया तोहे पियरीचढ़इबो'' एक गीत इस लिंक में -
http://www.bhojpurinama.com/video/sonwa-ke-pinjra-mein-song-of-film-ganga-maiya-tohe-piyari-chadhaibo
पहली भोजपुरी फिल्म का निर्माण : तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का भी आशीर्वाद इन्हे प्राप्त था। दिलचस्प बात तो यह है की डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने भोजपुरी की अपनी फिल्म हो , इसकी मंशा सर्वप्रथम इनके पास ही जाहिर की थी। डॉ राजेन्द्र प्रसाद उनके प्रेरणा श्रोत रहे थे, उनकी बातों ने रामायण तिवारी को काफी प्रभावित किया क्योंकि बिहार की भाषा में फिल्म निर्माण की बात हुई थी। साथ ही वे प्रसिद्द मराठी फिल्मकार वी शांताराम के क्रियाकलाप और अपनी भाषा मराठी के प्रति प्रेम से उनके कायल थे। अब उनके दिमाग में बस एक ही धून सवार थी भोजपुरी फिल्म का निर्माण लेकिन उनके पास इसके लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस सन्दर्भ में बिहार के ही एक उद्द्योग्पति से चर्चा की थी। रामायण तिवारी उनके संपर्क में आये और शुरू हो गयी फिल्म निर्माण की प्रक्रिया। रामायण तिवारी ने ही पूरी फिल्म की रूपरेखा तैयार की और उस दौर के सभी अच्छे कलाकारों को भोजपुरी फिल्म में काम करने के लिए प्रेरित किया। इस काम में उनका साथ दिया राजकपूर ने जो रामायण तिवारी के काफी करीब थे। भोजपुरी की पहली फिल्म गंगा मैया तोहे पियरे चढ़इबो के गानो की रिकॉर्डिंग से लेकर रिलीज़ होने तक सारा कार्य इनके देख रेख में ही संपन्न हुआ। इस फिल्म में महमूद, हेलेन, कुमकुम, अशीम कुमार, नज़ीर हुसैन, मुकरी आदि कुछ चर्चित नाम थे। फिल्म की शूटिंग इनके ही गाव मनेर में हुई और सारे कलाकार उनके ही घर पर ठहरे थे।
भोजपुरी फिल्म लागी नाही छूटे राम का एक गीत देखिये में -
http://www.bhojpurinama.com/trendsplay/RGdFGkUlVOQ/LAAGI-NAHIN-CHOOTE-RAMA---Talat-Lata---LAAGI-NAHIN-CHHUTE-RAM-1963-
इस फिल्म के निर्माण के तुरत बाद ही रामायण तिवारी ने बतौर निर्माता निर्देशक एक और भोजपुरी फिल्म लागी नाही छूटे राम के निर्माण का कार्य शुरू किया। इस फिल्म में भी लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी थी। चित्रगुप्त का संगीत था और कलाकार भी वही थे। उनकी सोच सफल हुई और लागी नाही छूटे रामा का निर्माण हुआ। यह फिल्म बहुत ही कामयाब और सुपर हिट रही तथा आज तक भारत में तथा भोजपुरी बोलने वाले विश्व भर में रह रहे लोगों में विशेषकर मारीशस और अन्य देशों में इसकी काफी मांग है। दिलचस्प बात यह है की जिस दिन लागि नाही छूटे रामा रिलीज़ होने वाली थी उसी दिन उस दौर के सुपर स्टार प्रदीप कुमार की फिल्म ताजमहल रिलीज़ हो रही थी। सबने मना किया पर रामायण तिवारी को अपनी फिल्म और अपने भोजपुरिया दर्शको पर पूरा भरोसा था। फिल्म रिलीज़ हुई और फिल्म ने बिहार में ताजमहल से भी अधिक का व्यवसाय किया। इस फिल्म ने ही भोजपुरी फिल्मों को भारतीय फिल्म उद्योग की मुख्य धारा में लाने का गौरव हासिल किया। यह सिर्फ दूरदर्शी रामायण तिवारी की इच्छा शक्ति थी जिसने जनता के लिए भोजपुरी फिल्म उद्योग का निर्माण किया इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आज तेलगू, तमिल और हिन्दी के बाद भोजपुरी फिल्में सबसे अधिक भारतीय दर्शकों द्वारा देखी जाती हैं।
मुंबई में निधन : हिंदी और भोजपुरी फिल्म के इस प्रतिष्ठित व्यक्तित्व , भोजपुरी फिल्मो के जन्मदाता और बिहार के पहले फ़िल्मी कलाकार का 9 मार्च, 1980 को मुंबई में निधन हो गया तथा अपने पीछे एक विरासत छोड़ गया जिसकी आने वाले समय में बराबरी नहीं की जा सकती है। आज उनकी तीसरी पीढ़ी भोजपुरी फिल्म जगत में सक्रिय है। उनके पुत्र स्वर्गीय भूषण तिवारी ने भी अभिनय के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायीं और अब उनके पोत्र सुजीत तिवारी की गिनती भोजपुरी के बड़े निर्माता और फाइनेंसर के रूप में होती है।
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