३० जनवरी महात्मा गाँधी जी की पुण्यतिथि (शहीद दिवस) : मोहनदास कर्मचन्द गांधी का जन्म २ अक्टूबर १८६० में हुआ था तथा म्रत्यु ३० जनवरी १९४८ को हुआ
था. भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा)
के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी
इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादीदिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं
स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है।संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है।
गांधी को महात्मा की उपाधि सबसे पहले 1915 में
राजवैद्य जीवराम कालिदास ने प्रदान की थी. रवीन्द्रनाथ टेगौर ने नहीं। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ
बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता
है। सुभाष चन्द्र बोस ने 6
जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गान्धी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं।[2] प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय
अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु रोजगार
करना शुरू किया। 1915
में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने
यहाँ के किसानों,
मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर
और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी
से राहत दिलाने,
महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता
के लिये अस्पृश्यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति
दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार
द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942
में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों
पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा।
गान्धी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रक्खे।
साभार : विकिपीडिया
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